Wednesday, February 5, 2025

कबिरा सोई पीर है- पहला उपन्यास



वसंत हाथ थामे साथ चल रहा है। सचमुच। ट्रेन में हूँ, देहरादून लौट रही हूँ। पूरे रास्ते सरसों के खेतों की बहार छाई हुई है। बहार को देखते हुए अपने दिल की धड़कनों से कहती हूँ, जरा आहिस्ता चलो, दोस्तों से एक ख़बर साझा करनी है। कि मेरा पहला उपन्यास 'कबिरा सोई पीर है' लोकभारती प्रकाशन से प्रकाशित होकर आ गया है। आज यानि 3 फरवरी से पुस्तक मेले में राजकमल प्रकाशन समूह के स्टॉल पर उपलब्ध है।

मनोज पांडेय का शुक्रिया उन्होंने मेरे लिखे को सुंदर ढंग से सहेज दिया है। अशोक भौमिक मेरे प्रिय हैं, उनका चित्र आवरण पर होना सम्मान की बात है।

प्रियदर्शन जी ने उपन्यास पढ़कर जब मुझे फोन किया था, मुझे लगा जैसे मेरा रिजल्ट आने वाला है। लेकिन जब उन्होंने कहा, 'यह उपन्यास एक सांस में पढ़ा जाने वाला उपन्यास है’ तो काफी देर लगी इस बात को जज़्ब कर पाने में। फिर उन्होंने इसी बात को ब्लर्ब में कुछ इस तरह लिखा, ‘इसमें संदेह नहीं कि यह उपन्यास एक सांस में पढ़ा जा सकता है, लेकिन उसके बाद जिस गहरी और लंबी सांस की ज़रूरत पड़ती है, वह कहीं हलक में अटकी रह जाती है। कई किरदारों और स्थितियों के बीच रचा गया यह उपन्यास हमारे समय की एक बड़ी विडंबना पर उंगली रखता है।‘
बहरहाल, पहला उपन्यास है। और पहले का एहसास कितना अलग होता है, आप सब जानते ही हैं। उम्मीद है जैसे आप सबने अब तक मेरे लिखे को स्नेह दिया है, इस उपन्यास को भी देंगे।
तो, ‘कबिरा सोई पीर है’ अब आपके हवाले है...

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