Friday, February 14, 2025

कबिरा सोई पीर है



मूलतः एक संवेदनशील कवयित्री के रूप में अपनी पहचान बनाने वाली प्रतिभा कटियार का यह पहला उपन्यास अपनी पठनीयता और अपने सरोकार दोनों वजहों से लगभग चकित करता है। खास बात यह है कि यह उपन्यास बड़ी सहजता से लिखा गया है। सरोकार और संवेदना के नाम पर हिंदी में जिस भारी-भरकम और लगभग समाजशास्त्रीय रूखेपन को छूते लेखन की उम्मीद की जाती है, उससे अलग यह उपन्यास अपने छोटे कलेवर में एक बड़ा वृत्तांत रचता है।

उपन्यास की कहानी एक कोचिंग सेंटर से शुरू होती है जहां अलग-अलग वर्गों के छात्र एक सी महत्वाकांक्षा के साथ पहुंचते हैं। मगर वहां भी छात्रों की पसंद-नापसंद, उनकी मैत्री और उनके संबंधों में एक स्पष्ट भेदभाव चला आता है। उपन्यास में ऐसे किरदार हैं जो इस भेदभाव को तोड़कर आगे बढ़ते हैं और बताते हैं कि दुनिया इन खानों से बड़ी है। जाहिर है, यह प्रेम और आपसी समझ के रसायन से बनी मनुष्यता है जो सामाजिक चाल-चलन पर भारी पड़ रही है। लेकिन दरअसल उपन्यास अगर इसी दिशा में बढ़ कर एक सुखांत पर खत्म हो जाता तो तो शायद वह बराबरी की कामना का एक रूमानी बयान होकर रह जाता। यहां लेखिका साबित करती हैं कि उनके लहजे में चाहे जितनी रूमानियत हो, यथार्थ की उनकी समझ बहुत खरी है। वे घर परिवार और समाज के सारे पूर्वग्रह और पाखंड जैसे तार-तार कर देने पर तुली हैं। वे एक पल के लिए भी इस बात को ओझल नहीं होने देतीं कि यह समाज बहुधा कुछ लोगों के प्रति बहुत अमानुषिक व्यवहार करता है और अगर यह भी न हो तो अपनी उदारता के चरम लम्हों में भी वह उनके अवसर छीनने में कोई कोताही नहीं करता, कोई हिचक नहीं दिखाता।

उपन्यास की नायिका दलित समाज से आती है और बचपन से ही देखती है कि उसकी प्रतिभा दूसरों की आंख का कांटा बनी हुई है। उसकी सफलता भी उसका अभिशाप है। जब उसे कोचिंग सेंटर में ऐसा दोस्त मिलता है जो बराबरी पर भरोसा करता है और उससे प्रेम करने लगता है तब वह कुछ बदलती दिखती है। लेकिन अंत में क्या होता है? क्या वह जीवन के इम्तिहानों और अपनी प्रतियोगिता परीक्षाओं में एक साथ पास कर पाती है? क्या वह अपने लक्ष्य और अपना प्रेम हासिल कर पाती है? इन सवालों के जवाब के लिए उपन्यास पढ़ना होगा।

इसमें संदेह नहीं कि यह उपन्यास एक सांस में पढ़ा जा सकता है, लेकिन उसके बाद जिस गहरी और लंबी सांस की ज़रूरत पड़ती है, वह कहीं हलक में अटकी रह जाती है। कई किरदारों और स्थितियों के बीच रचा गया यह उपन्यास हमारे समय की एक बड़ी विडंबना पर उंगली रखता है।

- प्रियदर्शन
 वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार

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