सहने के खिलाफ खड़े होना व्यक्ति के प्रति आक्रोश नहीं है बल्कि वह समझ है जिसमें आत्मसम्मान के फूल खिलते हैं। समझ जो दृष्टि देती है कि परिवार या शादी ही नहीं किसी भी रिश्ते को बचाने में अगर आत्मसम्मान दांव पर लग रहा है तो फैसला लेने का समय आ चुका है।
It Ends with Us पिछले हफ्ते देखी। तब से फिल्म साथ चल रही है, और साथ चल रही हैं न जाने कितनी बातें। आसपास बेवजह रिश्तों को घसीटती स्त्रियों की कहानियाँ। फिल्म पर काफी कुछ लिखा जा चुका है, कहा जा चुका है, दोहराने की मेरी कोई इच्छा भी नहीं सिवाय इतना कहने के फिल्म जरूर देखनी चाहिए।
फिल्म के बहाने मेरे भीतर जो हलचल है यह बात उसी के बारे में है। फिल्म की नायिका का अपनी माँ से पूछना, 'तुमने सहना बंद क्यों नहीं किया'।
फिल्म की नायिका का अपने पति (जो उसे पीटता है) से यह पूछना, 'अगर तुम्हारी बेटी का बॉयफ्रेंड या पति उसे पीटेगा तो तुम उससे क्या कहोगे' और नायक का पूरी ईमानदारी से यह कहना कि वो कहेगा कि, 'उसे छोड़ दो' कहानी की सघनता को सुंदर ढंग से दिखाता है।
नायक का यह कहना कि 'मैं अब वो सब कभी नहीं करूंगा, मैं अपना इलाज कराऊँगा' यह स्वीकारोक्ति फिल्म के अंत की दिशा बदलने की तैयारी सरीखी लगती है। लेकिन लिली जो फिल्म की नायिका है उसके ज़ेहनी स्पष्टता कितनी सहूलियत से अपना रास्ता चुनती है। यह फिल्म की ताक़त है। बिना किसी लाउडनेस के, बिना कोई चीखमचिल्ली के फिल्म का अंत किसी रोशनी सा खुलता है।
वह एक रिश्ते से निकलकर दूसरे रिश्ते में जाने की गलती नहीं करती, वक़्त लेती है, अपने वक़्त को अपने हाथ में थामती है। सूरज उसका माथा सहलाता है। मैं जानबूझकर एटलस के किरदार की बात नहीं कर रही क्योंकि मैं मानती हूँ कि एटलस जैसे सुंदर और यूटोपियन किरदार के बगैर भी लिली का फैसला यही होता और होना चाहिए।
हमारे आसपास जो तमाम लिली मुरझा रही हैं, जो फैसला नहीं ले पा रही हैं। जिनसे साथ सहा भी नहीं जा रहा लेकिन छोड़ भी नहीं पा रही हैं, यह उनके बारे में है। मानो लिली उन सबसे कह रही हो, खुद पर भरोसा करो और उठो। क्योंकि कुछ फैसले जो लगते तो व्यक्तिगत हैं लेकिन वो पीढ़ियों के लिए जरूरी होते हैं। शारीरिक हिंसा तो सिर्फ एक वजह है जो दिखती है, ज़्यादातर वजहें तो दिखती भी नहीं है लेकिन जिनकी मार हर दिन झेलनी होती है, और क्या अलग होना ही अंतिम फैसला है, यह सब व्यक्ति का खुद का निर्णय है। लेकिन आत्मसम्मान जब लगातार रिस रहा हो, रिश्ते में खुद के होने न होने पर रोज सवाल उठ रहा हो तो सोचना तो चाहिए। फैसलों के बाद का रास्ता आसान तो नहीं होता लेकिन रोशनी से भरा होता है इतना तो जरूर है। फिल्म की नायिका उसी रास्ते को दिखाती है।
हमारे आसपास जो तमाम लिली मुरझा रही हैं, जो फैसला नहीं ले पा रही हैं। जिनसे साथ सहा भी नहीं जा रहा लेकिन छोड़ भी नहीं पा रही हैं, यह उनके बारे में है। मानो लिली उन सबसे कह रही हो, खुद पर भरोसा करो और उठो। क्योंकि कुछ फैसले जो लगते तो व्यक्तिगत हैं लेकिन वो पीढ़ियों के लिए जरूरी होते हैं। शारीरिक हिंसा तो सिर्फ एक वजह है जो दिखती है, ज़्यादातर वजहें तो दिखती भी नहीं है लेकिन जिनकी मार हर दिन झेलनी होती है, और क्या अलग होना ही अंतिम फैसला है, यह सब व्यक्ति का खुद का निर्णय है। लेकिन आत्मसम्मान जब लगातार रिस रहा हो, रिश्ते में खुद के होने न होने पर रोज सवाल उठ रहा हो तो सोचना तो चाहिए। फैसलों के बाद का रास्ता आसान तो नहीं होता लेकिन रोशनी से भरा होता है इतना तो जरूर है। फिल्म की नायिका उसी रास्ते को दिखाती है।
बच्चों की खातिर जुड़े रहने की तरक़ीब सिखाने वाले चालाक समाज को अब ये बताना होगा कि जिस बच्चे को ढाल बनाकर शादी संस्था को बचा रहे हो उसमें बच्चे भी घुटन के शिकार हैं और आगे चलकर वे उलझे हुए व्यक्ति के रूप में बड़े होते हैं और समाज को कुछ नई किस्म की उलझनें ही देते हैं।
फिल्म का नाम है It Ends With Us लेकिन असल में यह फिल्म कहती है It begins with self.
2 comments:
उम्दा पोस्ट
बहुत सुंदर
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