तुम्हारा आकर जाना
मुझे प्रिय है
कि छूट जाती है एक ख़ुशबू तुम्हारे पीछे
जो डोलती-फिरती है मरे दायें बायें
तुम्हारे जाने के बाद,
जैसे तुम डोलते फिरते हो
आने के बाद.
तुम्हारे जाने में
वो जो फिर से आने की
आहट होती है न,
जैसे कोमल गंधर्व लगा हो मालकोश का
जाकर जोऔर क़रीब आ जाते हो तुम,
वो जो लगता है इंतज़ार का मद्धम सुर,
जो ख़्वाहिशों की पाज़ेब
छनकती रहती है हरदम,
वो जो जूही की डाल सी
महकती रहती है मुस्कुराहट
वही जीवन है
वही प्रेम है
हाँ, तुम्हारा आना ज़रूरी है
लेकिन उससे भी ज़्यादा ज़रूरी है
आने की इच्छा का होना.
मेरे लिये वो इच्छा प्रेम है.
अगर ज़िंदगी के रास्तों पर चलते हुए
कोई हाथ थामना चाहे तो
रोकना मत ख़ुद को.
बस जब बीते लम्हों का ज़िक्र आये
तो मुस्कुराना दिल से
मेरे लिये यही प्रेम है.
4 comments:
हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति।
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ९ जनवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
तभी तो किसी ने कहा है, इंतज़ार में जो बात है वह मिलन में भी नहीं
बहुत सुंदर रचना
बहुत सुंदर
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