हथेलियाँ फैलाई थीं तो आसमान का एक टुकड़ा उतर आया था हथेलियों पर. धूप और बारिश ने मिलकर आसमान के उस सुनहरे टुकड़े को और भी निखार दिया था. लड़की उसे देर तक देखती रही. उसने हथेलियाँ बंद कर लीं, और लम्बी सांस ली. आसमान के उस टुकड़े को मुठ्ठियों में भींचे वो चल पड़ी थी.
पास बहती नदी ने उसे देखा और पूछ बैठी, 'आसमान हथेली में लिए हो फिर भी उदास हो?' लड़की ने अपनी गीली हंसी को छुपाते हुए कहा, 'हाँ क्योंकि मुझे आसमान का टुकड़ा नहीं पूरा आसमान चाहिए...' यह कहकर लड़की जोर से हंसी. इतनी जोर से, इतनी जोर से कि क़ायनात घबराकर उसे देखने लगी. पेड़ों से पत्ते झरने लगे, परिंदे आसमान में उड़ते-उड़ते ही ठहरने को हो आये उन्होंने अपनी रफ्तार इतनी धीमी कर ली कि इस हंसी में डूब सकें.
नदी समझ गयी. उसने लड़की को पास बिठाया, उसे गले से लगाया. उसके सूखे होंठों पर थोड़ी नमी रखी और कहा,'जानती हूँ तेरी ख्वाहिश, तू बहुत जीना चाहती है न?' लड़की ने सर झुकाकर कहा, 'शायद मर ही जाना चाहती हूँ इतना...' इतना कहते-कहते लड़की के होंठों पर मुस्कान तैर गयी थी.
बिना जिए कौन मरता है पगली. देह का जीना क्या और मरना भी क्या. वो तो संसार का चक्र है.
लड़की ने नदी में पाँव डाले हुए ही मुठ्ठी में बंद आसमान से कहा, 'तुम्हें घर ले चलूं? सिरहाने रखूंगी. भाग तो न जाओगे?' लड़की की नर्म हथेलियों में रखे-रखे आसमान ऊंघने लगा था. उसकी बात सुनकर मुस्कुरा उठा और बोला, 'वहीं जहाँ, मोगरे की खुशबू, सावन की बरसातें, पलाश की दमक, सरसों की खिलखिल, राग भैरवी,आम की बौर रखी है...?
लड़की ने हैरत से उसे देखा, 'तुझे ये सब कैसे पता..?
'मैं तेरे हिस्से का आसमान हूँ, मुझे कैसे पता नहीं होगा.' आसमान ने मुस्कुराकर कहा. सामने जो सरसों की पीली चादर बिछी थी वो लहरा उठी. स्कूल जाते बच्चे लड़की को देखकर हाथ हिलाने लगे. नदी की आवाज़ में लड़की की तमाम उदासी गुम होने लगी.
तभी लड़की ने महसूस किया कि किसी ने उसकी आँखें मूँद ली हैं. उसकी बंद आँखों ने सुना, 'मैं तुम्हारा आसमान हूँ, हमेशा तुम्हारे साथ.'
लड़की की रुलाई फूट गयी...यह सुख की रुलाई थी इसमें मौसम की खुशबू थी. खिलने वाले पलाश और आने वाले बसंत की आहट थी. उसकी जीने की तलब और बढ़ गयी थी.
सूरज उस रोज जरा देर से आया था...
3 comments:
उसके हिस्से का आसमान और जीने की तलब !
बहुत सुंदर सृजन ।
..
बेहतरीन प्रस्तुति
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