Friday, November 19, 2021

एक दिन


सोचा था एक दिन सोउंगी देर तक
जागने के बाद भी अलसाती रहूंगी
सिरहाने रखी चाय ठंडी होती रहेगी
और गुनगुनी चादर में पूरे होने दूँगी ख़्वाब

सोचा था एक दिन जल्दी जागूंगी
उगते सूरज से आँखें मिलाऊँगी
ओस भरे बागीचे में नंगे पाँव टहलती रहूंगी
अख़बार में तसल्ली से ढूँढूंगी
कोई अच्छी खबर

सोचा था एक दिन फुर्सत से लेटी रहूंगी धूप में
सीने पर पड़ी रहेगी प्रिय किताब और
सोचती रहूंगी तुम्हारे बारे में
कि तुम अगर बारे में सोचते होगे
तो कैसे लगते होगे

सोचा था एक रोज टूटी-फूटी इबारत में
लिखूंगी कच्चा-पक्का सा प्रेम पत्र
देर तक रोती रहूंगी उसे लिखकर
फिर बिना तुम्हें भेजे ही
लौट आऊंगी अपनी दुनिया में

सोचा था अधूरा पड़ा रियाज़ उठाऊंगी एक रोज
इत्मिनान से साधूंगी न लगने वाले सुर
धूनी लगाकर बैठ जाऊँगी
तुम्हारी याद के आगे कि जरा कम आये वो
यूँ हर वक़्त याद आना बुरी बात है

सोचा था एक रोज तुम्हारी पसंद के रंग पहनूंगी
इतराउंगी आईने के सामने
कुछ मन का बनाउंगी
कुछ रंग भरूंगी अधूरी कलाकृति में
पौधों को पानी देने के बहाने बतियाऊँगी उनसे

सोचा था एक रोज तसल्ली से दोस्तों से बतियाउंगी
अरसे से न देखे गए मैसेज के जवाब दूँगी
कोई पसंद की फिल्म देखूंगी
पड़ोसन से उसका हाल पूछूंगी
बिल्ली के बच्चे के संग खेलूंगी

और हुआ यूँ कि वो एक दिन मिला
तो घर की सफाई,
कपड़ों और सामान की धराई
बड़ी, पापड़ मसालों को धूप दिखाने
बाजार से राशन, सब्जी लाने उसे सहेजने
बल्ब बदलने
मेहमानों की मेजबानी में बीत गया
मीर का दीवान रखा मुस्कुराता रहा
और मैं अधूरे सपने से बाहर निकल
फिरकी सी नाचती रही दिन भर

हुआ यूँ कि छुट्टी का एक दिन
ढेर सारे अरमानों के साथ उगा और
ढेर सारे काम करते बीत गया.

5 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 20 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर
आप भी आइएगा....धन्यवाद!

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 21 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
पाँच लिंकों का आनन्द पर
आप भी आइएगा....धन्यवाद!

जिज्ञासा सिंह said...

स्त्री जीवन संदर्भ को प्रासंगिक बनाती बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।

Manisha Goswami said...

बहुत ही सुंदर😍💓

PRABHAT DIXIT said...

Hm sabki kahani hai ye