Thursday, September 28, 2017

सुनो बेटियों, इनकार कर देना बनने से देवी



सुनो बेटियों,

हवाओं को चूमने से सकुचाना नहीं 
हरहराने देना अपने भीतर की नदी को
जी भर के 

खिलना तो इस कदर
कि हैरान हो जाए कुदरत भी 
और जब मिलना किसी से तो 
मिलने को देना नए अर्थ 
जिन्दगी तुम्हारी है यह भूलना मत 
कि जिंदगी के सारे सुख हैं तुम्हारे लिए भी 

चलना, गिरना, उठना फिर चलना
घबराने की बात नहीं
ढब है जीने का

रास्ते नहीं होते हमेशा कहीं पहुँचने के लिए
होते हैं भटकने के लिए भी 
भटकते हुए नये रास्तों की तलाश का सुख लेना और 
दुनिया के बनाये सही गलत वाले खांचों पर  
कट्टम कट्ट करके खिलखिलाना जोर से 

जीतना कोई मजेदारी नहीं
किसी की मुस्कुराहट पर
जिन्दगी हार जाने का सुख भी लेना
और दिलों को जीत लेने का भी

अपने 'खुद' को खंगालना बार-बार
बहुत चुपके से हमारी 'खुद की मर्जियों' में
शामिल हो जाती हैं जमाने की मर्जियां

तुम्हारी ख़ुशी तुमसे हो 
तुम्हारे दुःख भी हों तुमसे ही 
अपने  खुद के सुख दुःख कमाना
 कोई स्वार्थ नहीं
 जीवन है 

मत बढ़ाना अपने पाँव किसी पूजन-वूजन के लिए
इनकार कर देना बनने से देवी
और किसी को देवता बनाने से भी 
कि इन्सान होने से ज्यादा जरूरी कुछ भी नहीं

माथे पर रोली लगाने को बढ़ते हाथों से कहना 
हमें आधी रात को भी
सड़कों पर घूमने की आज़ादी चाहिए
अपने सपनों को जीने की आज़ादी
यह पूजा अर्चन नहीं

कोई हक दिए जाने का इंतजार किये बगैर
खुद निकल पड़ना अपनी जिन्दगी की तलाश में 

फूंक मारकर उड़ा देना
दैहिक प्रशंसाओं वाले
या त्याग समर्पण की देवी वाले जुमलों को 
कि अपने हक के लिए आवाज उठाने से ज्यादा
सौन्दर्य कहीं नहीं
अपनी मर्जी के सफ़र पर निकल पड़ने से बड़ा
सुख कोई और नहीं...

5 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

ढब? या ढंग।
सुन्दर अभिव्यक्ति।

Unknown said...

किसी की मुस्कुराहट पर जिंदगी हार जाने का सुख भी लेना।

Unknown said...

किसी की मुस्कुराहट पर जिंदगी हार जाने का सुख भी लेना।

Pratibha Katiyar said...

सुशील जोशी जी, ढब ही लिखा है मैंने तो...हमारे यहाँ खूब इस्तेमाल होना वाला देसी शब्द है...दादी कहती थीं 'कोई ढब न सीखो मोड़ी ने'. प्रतिक्रिया के लिए आभार!

deeps said...

सुन्दर