Friday, September 1, 2017

ताप, बारिश, इश्क शहर


देह पर से ताप यूँ गुजर रहा है
जिस तरह तुम्हारी याद गुजरती है
उनींदी आँखों की कोरों से
टप्प से टपक जाने से ठीक पहले

कानों में बारिशें किसी राग सी घुल रही हैं
मध्धम मध्धम
हरारत भरी आँखों में शरारत घुल रही है
बारिश के आगे फैलाई हथेलियों पर
गिरती हैं हल्की गर्म सी बूँदें
जैसा बारिश ने लिया हो हथेलियों का बोसा

बारिश में भीगे रास्ता भटककर मुंडेर पर आ बैठे पंक्षी
कनखियों से देखते हैं बारिश को भी मुझे भी
कि उनको अपने स्पर्श की गर्माहट देना चाहती हूँ
वो भी शायद करीब आने को आकुल हैं

देह पर से ताप यूँ ही नहीं गुजर रहा है
गुजर रहा है बहुत कुछ संग संग...

4 comments:

Onkar said...

बहुत सुन्दर कविता

Arun sathi said...

खूब

Unknown said...

अति सुन्दर भाव।

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