सिर्फ तुम्हारा ख़याल
खिला देता है हजारों गुलाब बहा देता कल कल करती नदियाँ
सदियों की सूखी, बंजर ज़मीन पर
तुम्हारा ख़याल
कोयल को कर देता है बावला
और वो बेमौसम गुंजाने
लगती है आकाश
टेरती ही जाती है
कुहू कुहू कुहू कुहू
तुम्हारा ख़याल
हथेलियों पर उगाता है
सतरंगा इन्द्रधनुष
काँधे पर आ बैठते हैं तमाम मौसम
ताकते हैं टुकुर टुकुर
खिलखिलाती हैं मोगरे की कलियाँ
बेहिसाब
हालाँकि मौसम दूर है
मोगरे की खुशबू का
तुम्हारे ख़याल से
लिपट जाती है
मुसुकुराहटों वाली रुनझुन पायल
खनकती फिरती है समूची धरती पर
दुःख सारे चलता कर दिए हों
मानो धरती से
और चिंताएं सारी विसर्जित कर दी हों
अटलांटिक में
तुम्हारे ख़याल ने
कंधे उचकाते ही
आ लगता है आसमान सर से
देने को आशीष
हवाओं में गूंजती हैं मंगल ध्वनियाँ
ओढती है धरती
अरमानों की चुनर
बस एक तुम्हारा ख़याल है
मुठ्ठियों में और
शरद के माथे पर
सलवट कोई नहीं...
10 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 21 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत खूबसूरत ख्याल ...
बहुत खूबसूरत रचना ।
अदभूत रचना. हमेशा की तरह.
अरे हां, एक बात. आप फेसबुक पर नहीं दिख रहीं. कहीं मुझे अनफ्रेंड तो नहीं कर दिया?
बहुत बढ़िया
@ अखिलेश्वर- शुक्रिया आपका! नहीं किसी को अन्फ्रेंड नहीं किया, कुछ दिन फेसबुक की दुनिया से विदा ली है बस.
स्वागत
बहुत ही उम्दा ..... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)
बहुत ही उम्दा ..... बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति .... Thanks for sharing this!! :) :)
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