अदबी ख़ुतूत : सातवीं कड़ी
जैसे-जैसे आसमान मेहरबान हो रहा है, जैसे-जैसे धरती लहक रही है, मोहब्बत की खुशबू बिखरती जा रही है। बारिश की इन बूंदों के बीच किसी के प्यार भरे ख़तों को छूना कोई जादू जगाना सा है अपने भीतर।सैकड़ों बरसों पहले महसूस किए गये कुछ अहसास किस कदर रूमानियत से भर रहे हैं। बाहर पेड़ भीग रहे हैं, सड़कें भीग रही हैं, खेत भीग रहे हैं, पेड़ों की पनाहों में परिंदे भीग रहे हैं भीतर मन भीग रहा है...किसी तलब सा उगता है इश्क का ज़ायका लबों पर...कोई खत खुलता है सामने...
फ्रेंच लेखक, दार्शनिक वॉल्तेयर (1694-1778) ने यह खत अपनी प्रेमिका को जेल से लिखा था।वॉल्तेयर के पिता ने उन्नीस बरस की उम्र में उसे नीदरलैंड में फ्रेंच राजदूत के साथ काम करने की व्यवस्था की। वहीं उसे एक ग्रामीण निर्धन स्त्री की बेटी से इश्क हो गया। उनका यह इश्क न राजदूत महाशय को रास आ रहा था न उस किशोरी की मां को। उन दोनों को अलग रखने की कोशिश में उसे जेल भेज दिया। लेकिन इश्क तो साहब इश्क ठहरा, कौन सी जेल की दीवारें रोक पातीं उसे...सो बहुत जल्द इश्क के कद के आगे जेल की दीवारें बौनी हो गईं और वॉल्तेयर वहां से निकल भागे। उसके बाद उन्होंने जो ख़त अपनी महबूबा को लिखा वो पेशे ख़िदमत है...
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The Hague 1713
प्रिय,
यहां मैं एक कैदी हूं. वो मेरी जिंदगी तो ले सकते हैं लेकिन मेरा प्यार....वो कैसे ले सकते हैं मुझसे? वो भावनाएं जो मैं तुम्हारे लिए महसूस करता हूं...उसे कोई ले सकता है क्या..?
हां मेरी प्यारी, मेरी जान, आज रात मैं तुम्हें देख सकूंगा, चाहे इसके लिए मुझे कुछ भी क्यों न करना पड़े। ख़ुदा के लिए मुझसे उस टूटे हुए लहजे में मत बात करना जो तम्हारे पिछले खतों से महसूस हुआ। तुम्हें जीना है और सावधान रहना है। देखो, तुम्हें अपनी मां से भी सतर्क रहने की जरूरत है। वो तुम्हारी सबसे बड़ी दुश्मन है, अब मैं क्या कहूं प्रिय, असल में तुम्हे हर किसी से सावधान रहने की जरूरत है।
तुम तैयार रहना प्रिये, जैसे ही चांद निकलेगा मैं तुमसे मिलने निकल पड़ूंगा। कोई गाड़ी का प्रबन्ध करूंगा। उसके बाद हम हवा से भी तेज गति से गा़ड़ी चलाते हुए यहां से चले जाएंगे।
अगर तुम मुझे प्रेम करती हो तो खुद को मजबूत करो, अपनी तमाम शक्ति और चेतना को एकत्र करो। ध्यान रहे, तुम्हारी मां को इस बारे में भनक भी नहीं लगनी चाहिए। कोशिश करना कि अपनी कुछ तस्वीरें साथ रख लेना। याद रखो प्रिय दुनिया का कोई भी ज़ुल्म, कोई भी सितम मुझे तुमसे दूर नहीं रख सकता। नहीं, किसी में इतनी शक्ति नहीं कि मुझे तुमसे, तुम्हारे प्यार से दूर कर सके।
हमारा प्यार तो एक वरदान है और हम इसे अंतिम सांस तक जियेंगे। प्रिये, ऐसा कुछ भी नहीं है जो मैं तुम्हारे लिए नहीं कर सकता, लेकिन जो कुछ भी मैं तुम्हारे लिए कर सकता हूं तुम उस सबसे कहीं ज्यादा की हकदार हो...ओह...मेरी जान...मेरा प्यार...
तुम्हारा ही...
वॉल्तेयर
(अनुवाद और प्रस्तुति- प्रतिभा)
1 comment:
बहुत सुन्दर
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