Tuesday, December 29, 2015

विस्मित माँ की डायरी



जिन्दगी की हर हरारत पे एक ही मरहम है, हमारे बच्चे। हर  दिन हमें चौंकाते हैं.

हम दोनों माँ बेटी दिन भर बच्चों की तरह झगड़ते हैं, रूठते हैं, कभी मैं उसकी चॉकलेट चुरा के खा लेती हूँ कभी वो मेरा मोबाईल छुपा देती है. कभी वो खाना न खाने की ज़िद पे डाँट खाती है कभी रसगुल्ले गर्म करके पेश करती है और झप्पी पाती है, कभी टीवी पर कोई दूसरा गाना लगाकर स्पीकर पे दूसरा गाना प्ले करके हँसते हैं तो कभी न्यूज़ चैनल और तारक मेहता का उल्टा चश्मा के बीच तलवारें खिंचती हैं, कभी वो मूड ऑफ देखकर मिमिक्री करती है तो कभी बेवक़्त आ गयी कच्ची नींद को कमरे का दरवाजा बंद करके घर को एकदम शांत बनाकर गहरी नींद में ढालने की कोशिश करती है. मुझे ज्यादा वक़्त यही लगता है कि वो माँ है मैं नहीं। कभी वो नानी से कहती है, 'नानी जल्दी से पढ़ाई कर लेने दो वरना मम्मा आ जाएगी तो पढ़ने नहीं देगी'.

रिपोर्ट कार्ड आता है तो झूठ-मूठ का नाटक करती है डरने का और मैं नाटक करती हूँ डांटने का. फिर हम दोनों हंसती हैं खिलखिलाकर। वो कहती है, ' मम्मा आपसे डर क्यों नहीं लगता मुझे, मेरी सारी फ्रेंड्स तो बहुत डरती हैं अपनी मम्मा से?' मैं कहती हूँ कि 'मैं दोस्त हूँ न इसलिए। ''बेस्ट फ्रेंड्स' वो मुझे सुधारती है.

तो नयी-नयी टीनएज में एंट्री ली मेरी इस बेस्ट फ्रेंड ने आज की मेरी हरारत को अचीवमेंट में बदल दिया। मुझे आदेश मिला कि आज आप बेड से नहीं हिलेंगी। और उसके बाद मेरे सामने पेश हुए उसके बनाये हुए लज़ीज़ कुरकुरे पराठे। एक-एक कौर खाते हुए जी निहाल हुआ जा रहा था. सिर्फ चार दिन हुए उसे शाम को रोटी बनाना सिखाने की प्रक्रिया में आये। रोज एक रोटी बनाने से सीखना शुरू करने वाली ने आज सामने थाली पेश की (सिर्फ पराठा अभी, सब्जी रजनी आंटी की बनायीं हुई है) तो जी लहलहा गया.

मुझे यकीन है कि अगर ये मेरा बेटा होता तो भी यही करता।

(शीर्षक माधवी से उधार )


2 comments:

pramod said...

वाह!बहुत सुन्‍दर.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

बेहतरीन और उम्दा प्रस्तुति....आपको सपरिवार नववर्ष की शुभकामनाएं...HAPPY NEW YEAR 2016...
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