जब हम पहली बार मिले थे
खूब बारिश हो रही थी
हालाँकि धूप कहीं गयी नहीं थी
लेकिन बारिश हो रही थी
मैं भीगना चाहती थी
लेकिन भीगने से बच रही थी
तुम भीगना नहीं चाहते थे
लेकिन मुझे भीगने से बचाने की खातिर
तुम भीग रहे थे
हालाँकि एक सूखा रेनकोट
हमारे दरम्यान था
मुस्कुराता हुआ
जब हम पहली बार मिले थे
आस-पास गाड़ियों का शोर था
हालाँकि एक गहरा सन्नाटा था
हमारे दरम्यान
मैं कितना बोल रही थी
जाने क्या- क्या, जाने कहाँ कहाँ की
हालाँकि उस बोलने में
मैं अपनी चुप्पी सहेज रही थी
और अपने बोलों से
तुम्हारा मौन भी गढ़ रही थी
आखिर हम
बोलने से बचा लाये थे
सबसे खूबसूरत शब्द
जब हम पहली बार मिले थे
समंदर पर बरस रही थीं उम्मीदें
और पेड़ की शाखों पर
बरस रही थी बर्फ
वादियों में कोई धुन बरस रही थी
और ज़ेहन के दरीचे में
बरस रही थी रौशनी
हालाँकि बाहर अँधेरा बरस रहा था
जब हम पहली बार मिले थे....
6 comments:
हुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में ...
रचना शायद इसी को कहते हैं ... लाजवाब ....
स्पर्शी अभिव्यक्ति
बहुत खूबसूरत अहसास … पहली मुलाक़ात और मन की बात ...
सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
कुछ न कहते हुए भी जब सब कुछ व्यक्त हो जाए तो बस प्रे ही गूंजता है फिजां में .. सब कुछ गौण हो जाता है ऐसे में ...
Post a Comment