Monday, October 3, 2011

चीखो दोस्त...

चीखो दोस्त 
जितनी तेजी से तुम चीख सकते हो
इतनी तेज की गले की नसें 
फटकर बहार निकल आयें 
और तुम्हारी आवाज
दुनिया का हर कोना हिला दे.

बांध लो अपनी मुठ्ठियाँ 
और भीन्चो अपना जबड़ा 
इस कदर कि
पूरी दुनिया दहल जाये तुम्हारी 
बंद मुठ्ठियों को देख 
पीछे हट जाएँ हमलावर 
भय से.

आँखों में गुस्से का बारूद भर लो
और देखो जब किसी को 
लाल आँखों से 
तो समझ में आ जाएँ उसे 
अपनी कमजोरियां बिना कुछ कहे.

समेटो अपनी समूची ताक़त 
टटोलो अपनी बाजुओं का दम
उठाओ अपना गिरा हुआ
छलनी हुआ वजूद
और डटकर खड़े हो जाओ 
कमजर्फ लोगों के खिलाफ. 

तोड़ दो मायूसी की कारा 
निकल जाओ असहायता की जेल से
मत सहो अपना ही जीवन 
अपने ही ऊपर 
'अपनी मर्जी' से
क्योंकि सबको अपना बुध्ध 
खुद ही बनना पड़ता है... 

(संजीव भट्ट के लिए)

14 comments:

Girindra Nath Jha/ गिरीन्द्र नाथ झा said...

संजीव भट्ट के साथ..आपकी इन पंक्तियों के संग-समेटो अपनी समूची ताक़त
टटोलो अपनी बाजुओं का दम
उठाओ अपना गिरा हुआ
छलनी हुआ वजूद
और डटकर खड़े हो जाओ
कमजर्फ लोगों के खिलाफ.

कविता रावत said...

बांध लो अपनी मुठ्ठियाँ
और भीन्चो अपना जबड़ा
इस कदर कि
पूरी दुनिया दहल जाये तुम्हारी
बंद मुठ्ठियों को देख
पीछे हट जाएँ हमलावर
भय से.
....बिलकुल सही बात ....बस एक बार हिम्मत से सामना कर लो फिर देखो ...
संजीव भट्ट जी को समर्पित आपकी यह रचना हर उस नागरिक के लिए है जो मूल्यों में विश्वास रखता हो और जो हिम्मत से जीना जानता हो..
बढ़िया जोशभरी रचना प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.

मनोज पटेल said...

Yessss...!!!

बाबुषा said...

Theek.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

Nidhi said...

sanjeev bhatt ke samarthan mein joshbhari rachnaa .

Arunesh c dave said...

ताकत बटोरी तो है मुकाबले मे खड़े भी है सामने मोदी है देखें ये कहा पहुंचते हैं वैसे पूरे मामले मे दोनो ही पक्ष कही न कही से गलत नजर भी आते ही हैं

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

जोश का पर्याय...
सादर...

rohit said...

अन्याय के खिलाफ उठ खडे होने वाले हर व्यक्ति के लिए प्रेरणादायक है यह कविता । कवि या फिर लेंखक इस प्रयास के रूप में भी तो एक एक्टिविस्ट ही होता है ।

रेखा said...

गहरी अभिव्यक्ति ...

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

अच्छी रचना,


आँखों में गुस्से का बारूद भर लो
और देखो जब किसी को
लाल आँखों से
तो समझ में आ जाएँ उसे
अपनी कमजोरियां बिना कुछ कहे.

वैसे संजीव को लेकर विवाद है, उसकी चर्चा फिर कभी

Anamikaghatak said...

damdar prastuti

vandana gupta said...

वाह वाह वाह वाह्………………सिर्फ़ और सिर्फ़ वाह्……………इसके आगे तो शब्द भी कमजोर पड गये।

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुन्दर और गहरी अभिव्यक्ति ...