समंदर के किनारे उस रोज उदास हो जाते, जब लड़की के घुंघरुओं की आवाज किनारों से उठते हुए लहरों में घुलती नहीं थी. लड़की रोज समंदर के किनारे अपने पैरों में घुंघरू बांधकर अपने मन को खोल दिया करती थी. समंदर उसके लिए किसी आईने के जैसा था. वो उससे अपने मन की सारी बातें कहती थी. उसकी लहरों के संगीत को वो कानों में पहनती थी. समंदर की अथाह गहराइयों को चुनौती देती थी कि मेरे मन की गहराई तुझसे ज्यादा है, इसलिए मुझसे ज्यादा इतराने की जरूरत नहीं. वो जब बहुत खुश होती या जब बहुत उदास होती थी वो समन्दर के किनारे नृत्य करती थी. समंदर उसके नृत्य का दीवाना था. जैसे ही उसे सामने से लड़की आती दिखती वो दौड़कर उसके पांवों में गिर पड़ता. लड़की उसे प्यार से गले लगाती. कैसे हो? वो उससे पूछती. समंदर मुस्कुरा देता.
वो यह कह ही नहीं पाता कि कब से पलकें बिछाये एकटक तुम्हारी ही राह देख रहा हूं. लड़की को समंदर से बहुत प्यार था. समंदर को लड़की से बहुत प्यार था. लेकिन कोई और भी था इस प्यार का हमसफर. वो लड़का जो अक्सर लड़की के साथ वहां आता था. या कभी-कभी बाद में भी.
हालांकि समंदर को अपना रुतबा लड़के से अक्सर बड़ा लगता क्योंकि लड़की आती भले ही लड़के के साथ थी लेकिन वो होती समंदर के साथ ही थी. कई बार लड़का झगड़ा भी करता कि क्या तुम समंदर को देखा करती हो. ऐसे ही चुपचाप आती-जाती लहरों को देखना था तो मेरे साथ क्यों आई? लड़की मुस्कुरा देती.
लड़का कई बार नाराज होकर चला जाता. लड़की तब भी मुस्कुरा देती. इस बार उसकी मुस्कुराहट में कुछ खारी सी नमी भी होती. वो गीली रेत पर अपने उदास पैरों की छाप छोड़ती और समंदर अपनी लहरों से उन उदास कदमों के निशान को अपने भीतर समेट लेता.
सूरज जब दिन भर जलते-जलते थक जाता तो समंदर की गोद में पनाह लेने को व्याकुल हो उठता. किसी और को सुनाई देती हो, न देती हो लेकिन लड़की को रोज समंदर के किनारे शाम के वक्त छन्न की आवाज सुनाई देती. वो जलते हुए सूरज के पानी में गिरकर बुझने की आवाज होती थी उसके घुंघरुओं की नहीं. वो उस एक लम्हे में नृत्य की उस मुद्रा में स्थिर हो जाती, जिसमें वह उस पल होती थी. उस मुद्रा में ठहरकर वो सृष्टि के नियम का उल्लंघन करती थी. वो 24 घंटों में से उस एक लम्हे को रोक लेती थी. दुनिया की कोई मशीन, कोई गणना, कोई विज्ञान यह राज आज तक नहीं जान पाया कि आखिर दिनों का छोटा या बड़ा होने का कारण क्या है. पृथ्वी, धुरी चक्कर ये सब तो चोचले हैं इन लोगों के अपनी अनभिज्ञता को छुपाने के. असल में यह सब लड़की और समंदर की कारस्तानी थी. कभी-कभी इस कारस्तानी में सूरज भी शामिल हो जाता था. और कभी-कभी तो चांद भी. बस इस सारे खेल में कभी लड़का शामिल नहीं हो पाता था. उसे हमेशा लगता था कि इस खेल के नियम वो नहीं जानता. अक्सर उसके साथ फाउल हो जाता और वो खुद को खेल से बाहर पाता. हालांकि लड़की कुछ अपने प्वॉइंट्स देकर फिर से अपने साथ ले आती. वो फिर से खेल में शामिल हो जाता लेकिन अनाड़ी तो अनाड़ी. कभी उसे सूरज हरा देता कभी समंदर. कभी तो कोई बादल का टुकड़ा आकर चांद पर बैठ जाता और लड़का जीतते-जीतते हार जाता. तब वो लड़की का हाथ पकड़कर वहां से चला जाता. जब भी लड़का ऐसा करता समंदर को लगता कि उसके साथ चीटिंग हो गई है.
इधर लंबे समय से बोझिल दिन समंदर के सीने पर लोटते रहते थे. उसने खुद को किसी बैरागी की तरह दुनियावी चीजों से मुक्त करना शुरू कर दिया था. यही वजह थी कि कई दिनों से समंदर एकदम शांत नज़र आ रहा था. इस बात के लोग कई एंगल निकालने लगे थे कि समंदर की इतनी गहरी खामोशी कहीं किसी आगामी विध्वंस की सूचना तो नहीं है. ये सच सिर्फ समंदर जानता था कि ऐसा कुछ भी नहीं है असल में वो इन दिनों आलसी हो गया है और उसका टस से मस होने का भी मन नहीं करता है. फिर कितने दिनों से लड़की भी नहीं आई थी.
आखिरी बार जब वो समंदर के किनारे आई थी तो लड़की की आखों में खूब चमक थी. लड़का भी उसके साथ था. दोनों खूब खुश थे. दोनों ने एक दूसरे को अंगूठी पहनाई थी. गले लगाया था. लड़की ने उस दिन खूब देर तक नृत्य किया था. इतना... इतना... इतना... कि उसके सारे घुंघरू टूटकर समंदर के किनारे बिखर गये थे. समंदर ने उन घुंघरुओं को अपनी लहरों में समेट लिया था. लड़की ने समंदर की इस हरकत को बहुत प्यार से देखा था. तभी छम्म...छम्म..की आवाज आई थी. ये लड़की के नृत्य की नहीं समंदर की लहरों की आवाज थी. लड़की कितना हंसी थी उस रोज. समंदर से उसने कहा था 'तुम' अब 'मैं' हो गये हो. मेरी ही तरह छम्म छम्म छम्म...कर रहे हो. उसने समंदर में अपना अक्स उतरते देखा. समंदर ने लड़की को अपने भीतर उतरते महसूस किया. लड़का इस खेल से अब भी बाहर था.
सूरज को बुझे काफी वक्त गुजर चुका था. चांद ऊंचे से नारियल के पेड़ पर लटका हुआ था मानो उसे अपने तोड़े जाने का बेसब्री से इंतजार हो. लड़की ने उसकी ओर शरारत से देखा और कहा, वहीं लटके रहो. उसने मोगरे के फूलों को बालों में सजाया और चांद को ठेंगा दिखाया. मोगरे के फूल लड़का लेकर आया था. वो फूल उसके लिए सृष्टि की सबसे खूबसूरत सौगात थे. चांद भी उसके आगे फीका था. उसने चांद से कहा नाहक तुझे खुद पर इतना गुमान है...उसने लड़के की ओर देखा और उसका गुमान फैलकर इतना बड़ा हो गया कि समंदर का किनारा कम पडऩे लगा.
उस हसीन शाम के बाद लड़की वहां नहीं आई. समंदर की लहरों से छम्म...छम्म...छम्म... की आवाज आती रही. सूरज रोज बेमन से उगता और डूबता रहा. चांद भी अपनी ड्यूटी बजाता रहा. किसी में कोई उत्साह नहीं था. बस सब सरकारी नौकरी की तरह निभा रहे थे अपना होना किसी स्थाई पेंशन के इंतज़ार में. हालांकि चांद कभी-कभी लड़की को शहर के भीतर भी तलाशता था. उसे लड़की की सूरत न$जर भी आ जाती लेकिन लड़की नज़र नहीं आती थी. इसी तरह दिन महीने बीतते गये.
एक रोज समंदर ने आसमानी रंग का दुपट्टा दूर से उड़ते देखा. आसमानी रंग लड़की का प्रिय रंग था. वो आसमान पहनकर समंदर में समा जाना चाहती थी. धरती तो वो खुद थी ही. आसमानी दुपट्टे में लड़की की छवि भी समंदर को दिखी. वो अनायास मुस्कुरा उठा. लड़की के कदमों में कोई गति नहीं थी. वो बस चल रही थी. धीरे-धीरे वो समंदर के किनारे पहुंच गई. समंदर पहले की तरह दौड़कर उसके पैरों में गिर पड़ा. लेकिन इस बार लड़की ने उसे उठाकर गले नहीं लगाया.
वो उदास थी. उसकी आंखों के नीचे काले घेरे थे. समंदर को उसने देखा और रो पड़ी. जैसे मायके लौटकर कोई लड़की अपनी मां को देखकर रो पड़ती है. बिना कुछ कहे सुने कितने संवाद हो जाते हैं उस रुदन में. उस रोज लड़की के नृत्य ने नहीं उसकी सिसकियों ने सूरज को पल भर के लिए थम जाने को विवश कर दिया. वो बहुत उदास हुआ. समंदर ने अपनी लहरों की पाजेब लड़की के पांवों में बांध दी. नारियल के पेड़ पर लटका हुआ चांद हैरत से देख रहा था सब कुछ. उसकी आंखें नम थीं. लड़की ने समंदर को गले लगाया और समंदर के किनारों पर घुंघरुओं की छम्म छम्म छम्म...फिर से गूंज उठी.
उस रोज लड़की ने ऐसा नृत्य किया...ऐसा नृत्य किया... कि वैसा उसके पहले किसी ने देखा था न बाद में किसी ने देखा. चांद खुद टूटकर उसके बालों में टंक गया था. मोगरे के फूल उस रोज वहीं किनारे पड़े थे. लड़की का चेहरा चमक रहा था. उसकी आंखों का सारा खारापन समंदर ने सोख लिया. लड़की अब हवा से हल्की हो उठी थी. उसका मन मुक्त था. उसी दिन से समंदर का पानी खारा हो गया और उसकी लहरों में संगीत घुल गया.
लड़की अब अपने बालों में फूल नहीं चाँद सजाती है. समंदर की लहरों से अब भी छम्म... छम्म... की आवाजें आती हैं. समंदर और लड़की के प्रेम की दास्तान किसी इतिहास में दर्ज नहीं है...
10 comments:
समंदर की विशालता और ऊर्जा में सबके लिये स्थान है।
swanil pyaar , payal kee chham chham .......bahut sundar
Wow ...Wat a gem..Lovely Imagination.. Yakeenan aisa hi hua hoga
अब समझ में आया चाँद की गति और ज्वार-भाटा....कितना झूठा होता है ये विज्ञान भी न...हम तो मन से यकीन करते है आपकी बात पर... दरअसल लहरों की आवाजे तो लड़की की पायल की छम-छम है....और समंदर के खरा होने की वजह भी वाजिब....शुक्रिया जो ये दास्ताँ हम तक पहुचाई :-)
Awesome !
हमें तो समंदर और लड़की के प्रेम की दास्तान से प्रेम हो गया प्रतिभा जी और आपकी कलम से भी :)
बेहतरीन प्रस्तुति ।
इश्क अपने साथ कई चीज़े लेकर चलता है... कई चीजों को पॉज़ कर देता है .... गुलज़ार की एक अल्बम याद आती है ..'.आसमानी रंग है आसमानी आँखों का "
rochak imagination...adbhut prem katha...
अमेजिंग ....मोहब्बत इंसान को सही मायने में सजीव बनाती है ..उस हर एक चीज़ को सांस लेना सिखाती है जो प्राण हीन हो |
kai prem kahaniyon ek silsila likhna shuru kiya tha maine kabhi..lekin beech men wo ruk gaya tha..is kahani ko padhkar likhne ka man ho raha hai...shahayd kalam uthe ..bahut acchi lagi ye kahani pratibha ji...
क्या है यार .. रुला दिया न ! कहाँ का पानी खारा होगा अब ?
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