यह प्रेम की कथा है
किसी दर्शन की नहीं
किसी सत्य की नहीं
किसी साधना की नहीं
न किसी मोक्ष की
वह घटी थी धरती पर
जैसे घटता है प्रेम
जिसमें समाहित हैं
दर्शन, सत्य, साधना, मोक्ष
सौंदर्य
कहां समाप्त हुई वह कथा अभी
अहर्निश वह जागती है
इस धरती पर
वह इस धरती की
प्रेमकथा...
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मृत्यु को जीतने नहीं
किसने कहा कि वह संतप्त था
मृत्यु को देखकर?
वह मृत्यु को जीतने निकला था
किसने कहा?
साक्षी हैं उसके वचन कि
उसने सिर्फ जीवन को खोजा
बस यह चाहा कि
काया की मृत्यु से पहले
न मरे मनुष्य....
- आलोक श्रीवास्तव
(कविता संग्रह दुख का देश और बुद्ध से)
2 comments:
बस यह चाहा कि
काया की मृत्यु से पहले
न मरे मनुष्य....
वाह !
दोनो ही विचारणीय प्रस्तुति।
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