Sunday, January 9, 2011

रात भर वर्षा


लड़का भाषा के गांव में रहता था. उसके पास सुंदर-सुंदर शब्द थे. शब्दों का घना जंगल था. पूरा बागीचा था. उसमें छोटे-बड़े, लाल, सफेद, नीले, पीले तरह-तरह के फूल खिलते थे. शब्दों के फूल. उन फूलों की खुशबू ऐसी थी कि किसी को छू भर दे, तो मतवाला कर दे. लड़का उन्हीं खूबसूरत फूलों के बीच पला बढ़ा था. उसे अच्छी तरह पता था कि किस फूल की क्या तासीर है. किस फूल को जूड़े में सजाना ठीक होता है और किसे सिरहाने रखकर सोने से नींद अच्छी आती है. किस फूल से उदासी भाग जाती है और किस फूल की खुशबू से फि$जां में संगीत गूंजने लगता है. लड़का शब्दों के जंगल में रच-बस गया था. उसका हुनर बेमिसाल था. जिंदगी की हर मुश्किल को वो शब्दों के फूलों से आसान बना लेता था. हर मौके के लिए, हर मुश्किल के लिए उसके पास कोई न कोई शब्द था. लड़के से सब खुश रहते थे. लड़का भी सबसे खुश रहता था.

लड़की मौन के गांव में रहती थी. लड़की के पास हर मौके के लिए एक मौन होता था. लंबा मौन, छोटा मौन. गहरा मौन, बहुत गहरा मौन. लड़की मौन की ही भाषा समझती थी. उसी में खुश रहती थी. एक रोज लड़की लड़के के गांव के पास से गु$जरी. शब्दों के फूल खूब-खूब खिले थे. लड़की उस ओर ख्ंिाची चली गई. लड़का पेड़ के नीचे बैठकर कोई गीत गा रहा था. लड़की उसे अभिभूत होकर सुनने लगी. लड़का गाता रहा. लड़की सुनती रही. उन दोनों पर ढेरों फूल बरसते रहे. लड़की फूलों के जादुई असर में आने लगी. लड़का रोज गाता था. लेकिन उस रोज उसे पहली बार गाने का असल सुख महसूस हुआ. उसे लड़की द्वारा सुना जाना अच्छा लगा. फिर तो रोज लड़की वहां आती. लड़का उसके लिए कोई नया गीत लिखता. उसे गाकर सुनाता. लड़की चुपचाप सुनती और लौट जाती. लड़का पूछता कैसा लगा? तो लड़की की कोरों पर दो बूंदें चमक उठतीं और वो मुस्कुरा देती. लड़का लड़की को रोज फूलों का एक गुच्छा भेंट करता था. धीरे-धीरे लड़की भाषा का जादू महसूस करने लगी. लड़की की खिलखिलाहट अब निखर गई थी. लड़की के मौन में मुस्कुराहट का रंग घुलने लगा था. किसी भी बात के जवाब में लड़की का बस मुस्कुराना या पलकें झपकाना लड़के को अच्छा लगता था. लड़के को लड़की का मौन लुभाता था. लड़की को लड़के की भाषा.

दोनों जंगल में घूमते फिरते थे. दोनों ने एक घर बनाना शुरू किया. भाषा की दीवारों पर मौन की खिड़कियां उगतीं, तो घर की खूबसूरती निखर जाती. लड़की शब्दों का इस्तेमाल घर को सजाने के लिए करती थी. लड़के को अब लड़की के मौन से प्यार हो चला था. उस रात दोनों अपने घर को अंतिम रूप व आकार दे रहे थे. घर के दरवाजे पर अरमानों की रंगोली सजी थी. लड़की नाचती फिरती थी. पूरे घर में शब्दों के फूल सजे थे. जरा सी हवा चलते ही वे झूमने लगते. उस रात पहली बार लड़की ने कुछ कहना चाहा था. उसने पहली बार अपने होंठों पर शब्दों के फूल खिलाने चाहे थे. लड़का कबसे इसी का इंत$जार कर रहा था. लड़की के होंठ $जरा से हिले. लड़का अपलक उसे देख रहा था. समूची सृष्टि लड़की के मौन के टूटने का मं$जर देखने को व्याकुल हो उठी. तभी आकाश में तेज बिजली कड़की. लड़की के होंठ खामोश ही रह गये.

सुना है उस रात घनघोर वर्षा हुई. इतनी वर्षा इससे पहले कभी नहीं हुई थी. लड़की भीगती रही. लड़का भी भीगता रहा. उस रात की वर्षा में जंगल नदी हो गया. नदी समंदर हो गयी. खेत, घर, खलिहान सब पानी हो गये. लड़की का घर भी पानी हो गया. शब्द और मौन एक-दूसरे का हाथ थामे नदी में एक साथ विलीन हो गये. कहते हैं इसके बाद से वैसे फूल कभी किसी को देखने को नहीं मिले. लड़की और लड़के का कुछ पता नहीं चला. हां, एक नेमप्लेट के अवशेष वहां अब भी मिलते हैं. जिस पर कुछ खुदा हुआ सा मालूम होता है. लेकिन चूंकि अब उन शब्दों की इबारत को समझने वाला कोई नहीं इसलिए हर कोई अंदाजा ही लगाता है कि $जरूर इस पर प्यार लिखा होगा.

लड़की अब भी मौन के गांव में भटकती है. लड़का अब भी भाषा के गांव में उसका इंतजार करता है. उन दोनों गांवों के बीच कोई पुल नहीं है. हर अमावस की रात को जब सफेद फूलों से धरती भर उठती है, तब लड़की की खिलखिलाहटों का संगीत अब भी गूंजता है.

ऐसा लोग कहते हैं...

7 comments:

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीया प्रतिभा कटियार जी
नमन ! प्रणाम ! वंदन !

मुझे समझ नहीं आ रहा है कि किसी के प्रति बहुत बहुत बहुत सारी श्रद्धा , बधाई , और आभार एक साथ व्यक्त करना हो तो क्या कहना उचित होता है !

"रात भर वर्षा" शीर्षक कुछ और हो सकता था , शायद … लेकिन यह विशेष महत्वपूर्ण नहीं । महत्वपूर्ण है आत्मा को छू लेने वाली सौ कविताओं पर भारी एक गद्य रचना !

सच, मैंने ऐसा अभिभूत कर देने वाला गद्य आज तक नहीं पढ़ा । पुनः पुनः प्रणाम स्वीकार करके उपकृत करें … … … !


~*~नव वर्ष २०११ के लिए हार्दिक मंगलकामनाएं !~*~

शुभकामनाओं सहित
- राजेन्द्र स्वर्णकार

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ी सुन्दर अभिव्यक्ति। पढ़ता गया, बस पढ़ता गया।

Kunwar Kusumesh said...

sundar abhivyakti.

naye varsh ki hardik shubhkamnayen

हरकीरत ' हीर' said...

कविता की सी शैली में लिखी आपकी बेहतरीन रचना छू गई .....

rohit said...

प्रतिभा जी आपकी इसी शैली का कायल हूं । बहुत सुन्दर ।

रोहित कौशिक

Neeraj Express said...

मेरे पास शब्‍द नहीं है। क्‍या लिखूं!!!!!!!!!!!! बस यही कहूंगा, बहुत खूब।

Patali-The-Village said...

बड़ी सुन्दर अभिव्यक्ति। बहुत खूब।