बाबुल जिया मोरा घबराये
बिन बोले रहा न जाये
बाबुल जिया मोरा घबराये...
बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो
मोहे सुनार के घर न दीजो
मोहे $जेवर कभी न भाये
बाबुल जिया मोरा घबराये...
बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो
मोहे व्यापारी के घर न दीजो
मोहे धन-दौलत न सुहाये...
बाबुल जिया मोरा घबराये...
बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो
मोहे राजा के घर न दीजो
मोहे राज न करना आये
बाबुल जिया मोरा घबराये...
बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो
मोहे लुहार के घर दै दीजो
जो मेरी जंजीरें पिघलाये....
बाबुल जिया मोरा घबराये...
- प्रसून जोशी
6 comments:
ये प्रतिभा जी ! कमाल की प्रस्तुति ....प्रशून जी की कविता ....जैसे पूरा स्त्री महाकाव्य .
आपकी कविता 'वागर्थ' मे पढ़ी........हार्दिक बधाई .
बाबुल जिया मोरा घबराये
बिन बोले रहा न जाये
बाबुल जिया मोरा घबराये...
बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो
मोहे सुनार के घर न दीजो
मोहे $जेवर कभी न भाये
बाबुल जिया मोरा घबराये...
बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर .............रचना....
बहुत सुंदर प्रस्तुति !!!
सुन्दर !
babul nahi sunenge tumhari araj/
mayya nahi samjhegi tumhari pukar/
lohar nahi kaat payega tumharee zanjeeren
khud banana hoga tumhe lohar
chardiwari ke mulayam andhere ko chodna hoga khud
tapna hoga sangharshon ke alaav me
-Ritambhara
marmik...
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