Saturday, March 20, 2010

बाबुल जिया मोरा घबराये


बाबुल जिया मोरा घबराये
बिन बोले रहा न जाये
बाबुल जिया मोरा घबराये...
बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो
मोहे सुनार के घर न दीजो
मोहे $जेवर कभी न भाये
बाबुल जिया मोरा घबराये...
बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो
मोहे व्यापारी के घर न दीजो
मोहे धन-दौलत न सुहाये...
बाबुल जिया मोरा घबराये...
बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो
मोहे राजा के घर न दीजो
मोहे राज न करना आये
बाबुल जिया मोरा घबराये...
बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो
मोहे लुहार के घर दै दीजो
जो मेरी जंजीरें पिघलाये....
बाबुल जिया मोरा घबराये...
- प्रसून जोशी

6 comments:

सुशीला पुरी said...

ये प्रतिभा जी ! कमाल की प्रस्तुति ....प्रशून जी की कविता ....जैसे पूरा स्त्री महाकाव्य .
आपकी कविता 'वागर्थ' मे पढ़ी........हार्दिक बधाई .

संजय भास्‍कर said...

बाबुल जिया मोरा घबराये
बिन बोले रहा न जाये
बाबुल जिया मोरा घबराये...
बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो
मोहे सुनार के घर न दीजो
मोहे $जेवर कभी न भाये
बाबुल जिया मोरा घबराये...
बाबुल मेरी इतनी अरज सुन लीजो



इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर .............रचना....

प्रज्ञा पांडेय said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति !!!

siddheshwar singh said...

सुन्दर !

Ritambhara said...

babul nahi sunenge tumhari araj/
mayya nahi samjhegi tumhari pukar/
lohar nahi kaat payega tumharee zanjeeren
khud banana hoga tumhe lohar
chardiwari ke mulayam andhere ko chodna hoga khud
tapna hoga sangharshon ke alaav me
-Ritambhara

Arvind Sharma said...

marmik...