इस वसंत के किनारे रुको
इसके फूलों में
इसके पानी में
इसकी हवा में
डूब जाओ थोडी देर को
सुनो इसके पदों की आवाज़
छुओ इसकी पत्तियां
सौंप दो अपने को
एक नाद सुने देगा
दिखाई देंगे देवदूतों के चेहरे
तुम्हारे भीतर प्रेम
बस धीमे से एक बार
नाम लेगा किसी का
तुम अमर होगी इस ऋतू में
फूल, पानी, हवा, वृक्ष और पत्तियां
तुम्हें धन्यवाद देंगी
नदियों में तुम्हारे लिए
आशीष होगा!
अलोक श्रीवास्तव की कविता
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