Sunday, February 1, 2009

is vasant men


इस वसंत के किनारे रुको
इसके फूलों में
इसके पानी में
इसकी हवा में
डूब जाओ थोडी देर को
सुनो इसके पदों की आवाज़
छुओ इसकी पत्तियां
सौंप दो अपने को
एक नाद सुने देगा
दिखाई देंगे देवदूतों के चेहरे
तुम्हारे भीतर प्रेम
बस धीमे से एक बार
नाम लेगा किसी का
तुम अमर होगी इस ऋतू में
फूल, पानी, हवा, वृक्ष और पत्तियां
तुम्हें धन्यवाद देंगी
नदियों में तुम्हारे लिए
आशीष होगा!
अलोक श्रीवास्तव की कविता

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