Sunday, May 13, 2018

माँ के लिए


अगर हम रोक सके हैं तुम्हें अपने हिस्से के सुख

हमारी खातिर सहेजने से
अपनी पसंद की चीज़ें
छुपाकर हमारे लिए रखने से
गर्म फुल्के खिलाने को देर रात तक जागने से

अगर तुम्हें नहीं भूलने दिया कि
खाने में क्या-क्या पसंद है तुम्हें
रंग कौन से खिलते हैं तुम पर
और गाने कौन से गुनगुनाती थीं तुम कॉलेज में
किस हीरो की फैन हुआ करती थीं तुम
तो शायद हम बचा सके हैं 'माँ' के भीतर
माँ के अलावा भी जो स्त्री है उसे

'निरुपमा राय मत बनो' कहकर
जब हम खिलखिलाते हैं न
तब असल में बदलना चाहते हैं
तमाम माँओं की त्यागमयी छवि
महिमामंडन वाली माँ के पीछे नहीं छुपाना चाहते हम
खुलकर जीने वाली,
अपनी मर्जी का करने वाली स्त्री को

तुम जब जीती हो न अपने लिए भी
तब खिलता है हमारा मन
जब तुम छीनकर खाती हो आइसक्रीम
तब लगता है कि बचा सके हैं हम अपनी माँ को
उसके भीतर भी, अपने भीतर भी

तुम रसोई से में पकवान बनाने से
ज्यादा अच्छी लगती हो, कैंडी क्रश खेलती हुए
बारिश में भीगने पर डांटते-डांटते खुद भीगते हुए
अच्छी लगती हो, गलत के खिलाफ लड़ते हुए
नाराज होते हुए कि 'चुप रहना किसने सिखाया तुम्हें
लड़ जाना हर मुश्किल से मैं हूँ अभी'

तुमने ही तो सिखाया
हर सफलता पर पाँवो को जमीं पर टिकाये रखना
जीना जी भर के और जीने देना भी
तुमने सिखाया तुमसे भी लड़ लेना कभी कभी
और मना लेना भी एक-दूसरे को

तुममें तुम्हारा बचा रहना ही हमारा होना है.

7 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

अनन्त है माँ।

Meena sharma said...

सुंदर ! मातृदिवस पर शुभकामनाएँ।

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