Sunday, November 19, 2017

वो लम्हे


'सिखाना' मुझे हमेशा सीखना' सुनाई दिया हमेशा. 'समझाना' सुनाई दिया 'समझना' और 'कहना' सुनाई दिया 'सुनना' ही. तो ऐसे ही सीखने, समझने और सुनने के रास्तों पर चलना लुभाता है. युवाओं से संवाद के हर अवसर को मैंने चुना अपनी आंतरिक ऊष्मा को संजोये रखने के लिए, उनकी आँखों के सपनों की भाषा को पढने के लिए, उनके सवालों की गठरी को टुकुर टुकुर देखने के लिए. उन सवालों में कुछ अपने सवाल भी मिला देने के लिए.

पिछले दिनों यह मौके कई रूपों में मिले, कभी दून स्कूल ने बच्चों से संवाद का अवसर दिया, कभी केन्द्रीय विद्यालय ने और अभी हाल ही में दून विश्वविद्यालय ने. भूमिका कुछ भी रही हो मैंने किया वही जो मैं कर सकती थी कि बच्चों को सुना उनसे बातें कीं. 

दून विश्वविद्यालय के छात्रों ने अपनी 'बज़्म' में जिस तरह के रंग सजाये थे उसने अभिभूत किया. महसूसने के इस सफ़र में गीता गैरोला जी और राकेश जुगरान जी भी साथ ही रहे. बहुत उम्मीद भरे लम्हे थे,  उम्मीद की इस  खुशबू में यह दुनिया डूब जाए तो कितना सुन्दर हो...!


2 comments:

Onkar said...

सुन्दर रचना

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (20-11-2017) को "खिजां की ये जबर्दस्ती" (चर्चा अंक 2793) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'