Monday, October 6, 2025

बेहद ज़रूरी रचना है कबिरा सोई पीर है- हृषिकेश सुलभ




ऋषिकेश सुलभ जी की स्नेह भरी यह चिट्ठी मिली है। जिनको पढ़ते हुए लिखना सीखा उनसे अपने लिखे पर यह पढ़ना विनम्र सुख और संकोच से भर देता है। बहुत शुक्रिया हृषिकेश जी।
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प्रतिभा,
आपका पहला उपन्यास “कबिरा सोई पीर है” कुछ ही दिनों पहले पढ़ा! अपने कथ्य को लेकर यह उपन्यास एक बेहद ज़रूरी रचना है। इसका कथ्य समय-सापेक्ष है और अपने गर्भ से अग्नि की ज्वाला को जन्म देता है। यथार्थ की ऐसी अनुभूति जिसे भूलना कठिन है, इस उपन्यास में अभिव्यक्त है। जाति व्यवस्था से पैदा हुए दंश की पीड़ा के अकथनीय मर्म को आपने रचा है! आपकी भाषा में सहज प्रवाह और अभिव्यक्ति की क्षमता है। उपन्यास के कहन में भी सहजता है, जिससे कई दुर्लभ मार्मिक क्षण रचे जा सके हैं।

हृषीकेश सुलभ