Tuesday, July 15, 2025

पुणे...दोस्त शहर


पुणे शहर की एक ख़ास बात है। यह शहर दोस्ती करने को अकुलाया हुआ सा लगता है। जैसे शहर के सीने में छुपकर मीठी मुलाक़ात की हसरत रहती हो। जैसे ढेर सारे लोगों से, अपनेपन से भरे हुए लोगों से घिरे होने के बावजूद कोई कोना एकांत का सुख तलाश हो, किसी एक निगाह का मुंतज़िर हो जो निगाह उसे ही ढूंढ रही हो।

देर रात बरसती रात में बेवजह सड़कों पर टहलते हुए मैंने शहर से गुलज़ार साहब के शब्द चुराकर पूछा, 'इतने लोग तो हैं, फिर तन्हा क्यों हो?' शहर चुप रहा। वो मेरे साथ हो लिया मानो बांह थामना चाहता हो। मानो कांधे पर सर रखकर थोड़ा रोना चाहता हो, मुस्कुराना चाहता हो। मैंने उसकी मासूम आँखों में अपनी आँखों को रख दिया। हम दोनों साथ चलने लगे। चलते-चलते उसने मेरा हाथ थाम लिया था। यूं हाथ थामकर चलना मुझे भी तो कितना ज्यादा पसंद है, सफ़र ख़ूबसूरत हो उठा था। बारिशें और तेज होती गईं...हम तब तक टहलते रहे जब तक नींद ने उठाकर हमें बिस्तर पर फेंक नहीं दिया।

सुबह उठी हूँ तो मुस्कुराहट खिली हुई है। अब इस शहर में मेरा एक पक्का दोस्त है। शहर ख़ुद। 'चाय पियोगे?' मैंने  शहर से पूछा। उसने हामी भरने के लिए बारिश की लौ तेज कर दी।

इस सुबह में मैं 3 कप चाय बना रही हूँ। मेरी, शहर की और अदिति की। अदिति, हाँ उससे ही तो मिलने आई हूँ। अदिति ख़ुशबू है, ऐसी ख़ुशबू जो सबको बांध लेती है। बरसों पहले इसी शहर में वो अपने प्रेम की मन्नत के बीज बो गई थी। वो बीज अब दरख़्त बन चुके हैं। हम सब उसके प्रेम के दरख़्त के नीचे बैठकर सुकून पाते हैं। हर टूटे बिखरे को, हर छूटते लम्हे को संभाल लेने का शऊर इस लड़की में बहुत है। खयाल का भी खयाल रखने की मानो कोई जिद है अदिति में। हिम्मत, मेहनत और प्यार से बनी यह प्यारी लड़की हमारे घर की लाइफलाइन है। इसलिए, मैं पुणे घूमने नहीं आई, रहने आई हूँ अदिति के पास। अब यहाँ भी एक घर है मेरा।

इस शहर के पास प्यार है, बारिशें हैं, हरियाली है, सुंदर मौसम है और अब अदिति भी है। इस सुबह में सुकून है, सुख है, प्यार है और ढेर सारी उम्मीद है...आख़िर इस दुनिया को प्यार ही तो संवार सकता है। सारे मसायल का हल प्यार के ही तो पास है।

चाय की ख़ुशबू रजनीगंधा के फूलों की ख़ुशबू से आँख मिचौली खेल रही है...बारिश यह खेल देखकर मुस्कुरा रही है। चलो न, चाय पीते हैं।

(पुणे डायरी)

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