Monday, April 21, 2025

मेरे भीतर पाखंड भरा है



'मैं ख़ुद के भीतर चल रही इस उलझन को समझ नहीं पा रहा हूँ तृप्ति। मुझे लगता था मैं काफी लिबरल हूँ, लेकिन इस एक घटना ने मेरी अब तक अपने बारे में बनाई गई राय को खंडित कर दिया। मुझे महसूस हुआ कि मेरे भीतर काफी पाखंड भरा है, लिबरल होने का पाखंड। मैं आम आदमी ही हूँ, आम पुरुष, बल्कि उनसे भी बुरा। क्योंकि मैंने अपने भीतर लिबरल होने का झूठ पाल रखा है।'
 
कबिरा सोई पीर है • प्रतिभा कटियार
#साथजुड़ेंसाथपढ़ें #लोकभारतीप्रकाशन

Wednesday, April 16, 2025

कबिरा सोई पीर है- सामाजिक विषमताएं उभरती हैं पात्रों के अंतर्द्वंद्व में


- सुरेखा भनोट 

इंतजार के बाद आ ही गया 'कबिरा सोई पीर है' मेरे हाथों में भी। और एक ही दिन में चार बार शांत वातावरण ढूंढकर इस बेहद सुंदर कृति को पढ़ लिया। पूरा दिन तृप्ति ,अनुभव ,सीमा, कनिका,उनके परिवारजन, उनके संघर्ष, अन्तर्द्वन्द महसूस करती रही। प्रतिभा, तुमने प्रत्येक पात्र जो विविध मानसिकता, विभिन्न परिस्थितियों में जी रहे हैं, अपने संघर्ष, अन्तर्द्वन्द के साथ, उनके आपसी संबंधों को कुछ ऐसा गढ़ा है कि हम हर पात्र को बिना किसी मूल्यांकन के समझ पाते हैं। इन पात्रों के माध्यम से तुमने बेबाक उभारा है जाति का दंश, दंभ, पितृसत्ता की साजिश, स्त्री की निरहिता , सामाजिक विषमताएं। 

भाषा बहुत सुंदर ,सरल कवितामय है।  हर प्रसंग एक उपयुक्त शेर से शुरू होता है, अंत में पूरा शेर। यह शैली मुझे बहुत रास आई। ऋषिकेश शहर, उसमे बहती गंगा का विवरण और उसका सबके साथ एक अपना ही प्यार सा रिश्ता है जो भी मन को छू जाता है। 

प्रतिभा का कवि मन, उसकी कल्पना, प्रकृति के साथ तादात्म्य झलकता है पूरे उपन्यास में। कनिका और तृप्ति की दोस्ती स्वयं प्रतिभा के अनन्य लोगो के साथ खूबसूरत दोस्ती की झलक है। ये किताब तो बार-बार, कोई भी पृष्ठ खोलकर स्वयं को , समाज को सुंदर, भरोसेमंद बनाने के लिए प्रेरित करेगी, मार्गदर्शन देगी। 

शाबाश, बधाई, प्यार प्रतिभा इतना सुंदर उपन्यास लिखने के लिए! 🥰

(सुरेखा जी बिट्स पिलानी की प्रोफेसर रही हैं। सेवानिवृत्ति के बाद सामाजिक कार्यों से जुड़ी हैं।)

Monday, April 14, 2025

बेहद प्रासंगिक है 'कबिरा सोई पीर है'



- श्रुति कुशवाहा 
(पत्रकार, कवि)
आजकल एक ट्रेंड सा चल पड़ा है…आप किसी मुद्दे को उठाइए और कई लोग मंत्र की तरह जपने लगेंगे ‘अब ऐसा कहा होता है’ ‘दुनिया बदल गई है’ ‘आप किस ज़माने की बात कर रहे हैं’ ‘ये सब गुज़रे समय की बात हो गई’। मुद्दों को डाइल्यूट/डिस्ट्रेक्ट/डायवर्ट करने का ये सबसे आसान तरीका है।
 
आपके घर में..आपके मोहल्ले में..आपकी सोसाइटी में या आपके आसपास का माहौल बदल जाने भर का अर्थ ये नहीं कि सारी दुनिया बदल गई है। दुनिया उतनी रंगीन नहीं है..जितनी आपके चश्मे से दिखाई देती है।
दुनिया आज भी बेतरह चुनौतीपूर्ण, संघर्षों और समस्याओं से भरी हुई है..जिसे Pratibha Katiyar के उपन्यास ‘कबिरा सोई पीर है’ में पूरी मुखरता से दर्शाया गया है।

‘जाति’ पर बात करना आज के समय में कुछ आउटडेटेड मान लिया गया है। बार-बार वही जुमला सुनाई देता है…’अब कहा होता है भेदभाव’ ‘अब तो *उनको* सारी सुविधाएं मिला हुई हैं, रिजर्वेशन है, हम *उनके* हाथ का खा भी लेते हैं, *उनके* घर आना-जाना भी है*’। लेकिन इन सबमें ये जो “उनके” है न…यही भेदभाव है। आज भी रिजर्वेशन के नाम पर कितने लोग मुँह बिचकाते हैं..कभी गौर किया है आपने ?

‘कबिरा सोई पीर है’ उपन्यास में इस विषय पर बहुत गहनता से गौर किया गया है। एक प्रेम-कहानी है जिसके इर्द-गिर्द वास्तविक दुनिया कितनी प्रेम-विहीन और निष्ठुर है..ये उकेरा गया है। यकीन मानिए प्रेम की भी राजनीति होती है। प्रेम भी समय और समाज के कलुष से अछूता नहीं रह पाता। चाहे जितना प्रगाढ़ हो..प्रेम पर भी कुरीतियों के कुपाठ का प्रभाव पड़ता है।

प्रतिभा जी के उपन्यास को पढ़ते हुए मन बार-बार व्यथित होता है। मैंने कई बार चाहा कि पन्ना पलटने के साथ काश कोई जादू हो जाए। लेकिन ये चाहना वास्तविकता से मुँह फेरना ही तो है। और उपन्यास वास्तविकता से बिल्कुल भी मुँह नहीं फेरता है। इसमें कई मुद्दों को छुआ गया है लेकिन जाति व्यवस्था मूल विषय है। यहाँ कोई लागलपेट नहीं है..कोई छद्म आडंबर नहीं है..शब्दों की चाशनी नहीं है..भाषा का खेल नहीं है..सौंदर्य का कृत्रिम आवरण नहीं है। 

इस उपन्यास में आपको खरा सच मिलेगा..और सच से आँख मिलाने की कठिन चुनौती भी।
बहुत सुंदर कविताएँ और कहानियाँ लिखने वालीं प्रतिभा कटियार जी का ये पहला उपन्यास है जिसमें सरोकार, ईमानदारी और बेबाकी के साथ इस गंभीर मुद्दे को उकेरा गया है। ये उपन्यास आपकी संवेदनाओं को झकझोरता है और कई प्रश्नों के साथ छोड़ जाता है। इसे पढ़ने के बाद कोई भी संवेदनशील व्यक्ति बेचैनी से भर जाएगा। जब तक मनुष्य को जाति के पैमाने पर तौला जाता रहेगा..इस उपन्यास की प्रासंगिकता बनी रहेगी। और आज के विद्रूप होते समय में ये उपन्यास बेहद प्रासंगिक है।

‘कबिरा सोई पीर है’ पढ़ा जाना चाहिए और इसमें उठाए सवालों पर मनन होना चाहिए।

Saturday, April 12, 2025

समाज की सच्चाई की परतें खुलती हैं कबिरा सोई पीर है में



- जयंती रंगनाथन 
(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक )

प्रतिभा कटियार बेहद अजीज है, सालों का रिश्ता है। अंदर-बाहर से बेहद प्यारी। हम कम मिले हैं, पर जब भी मिले हैं, झूम कर, प्यार से और ऐसे कि कोई बेहद पुराना सा रिश्ता हो।
प्रतिभा बहुत प्यारी और गहरी कविताएं लिखती हैं। उसका पहला उपन्यास आया है कबिरा सोई पीर है, लोकभारती पेपरबैक्स से। बिलकुल प्रतिभा की ही तरह है उसका उपन्यास, बोलता हुआ और बहुत कुछ कहता हुआ। जितना लिखा है, उससे भी गहरा।

प्रतिभा ने अपने पहले उपन्यास का विषय साहस से उठाया है, समाज का वो वर्ग, जो सालों से दबा-कुचला रहा है। उस वर्ग की दो बहनें तृप्ति और सीमा अलग-अलग तरह से अपने परिवेश और घुटन से लड़ती हैं। तृप्ति पढ़ने में होशियार, सीमा व्यवहारकुशल। सांवली और औसत दिखने वाली तृप्ति सिविल सर्विस के मुहाने पर खडी है, प्रिलिम्स क्लीयर कर चुकी है। कोचिंग क्लास का साथी सवर्ण लड़का उसे चाहता है। पर जाति की दीवार इतनी लंबी-चौंडी-संकरी है जिससे पार पाना मुश्किल। उपन्यास पढ़ते हुए कई बार मैंने पन्नों को मोड़ कर रख दिया, इस दुआ के साथ कि आगे के पन्नों पर बहनों के साथ सब अच्छा हो। भरे मन के साथ पन्ने खोलती। वहां तो सच की चादर तनी थी। एक गुस्सा सा व्याप्त होने लगा कि हम जिस जमीन पर खड़े हैं, वहां से एक गज नीचे हमने दूसरों को रहने लायक छोड़ा ही नहीं।

इस उपन्यास की कई परतें हैं। किरदारों की भी। आप अंत तक यही मनाते हैं कि सब ठीक हो जाए।
एक बात और, मैंने जो जिंदगी देखी और आसपास देख रही हूं, वहां अब जाति को ले कर इतने खूंखार मसले नहीं रहे। हमारी बिल्डिंग में ही गाड़ी साफ करने वाले आदमी को जब किसी गाड़ी के मालिक ने गाली दी, तो हंगामा हो गया। अंतत: पुलिस आई, गाली देने वाले को उठा कर ले गई और उसे माफी मांगनी पड़ी। इस चेतावनी के साथ कि आगे से वो गाली-गलौच नहीं करेगा। माली, काम वाली, क्लीनर सबके बच्चे घर आते हैं, बिल्कुल हमारे बच्चों की तरह रहते हैं। सबके बच्चे मिल कर खेलते हैं। मैंने कभी किसी माता-पिता को यह कहते नहीं देखा कि तुम माली या ... के बच्चे के साथ नहीं खेलोगे
माहौल बदल रहा है। सकारात्मक बदलाव।
इस समाज का सालों से हमें इंतजार था
बड़े पदों पर एससी एसटी काम कर रहे हैं, पूरी इज्जत के साथ।
किसकी हिम्मत है कि उनके कहे की अवहेलना करे

यह भी अहम बात है कि गांव-कस्बों में दलितों खासकर लड़कियों के साथ होने वाली नृशंस घटनाओं की खबर लगभग रोज अखबारों में छपती हैं। दिल दहलाने वाली। खून खौलता है कि कैसे उन्हें बचाया जाए
ऐसे परिप्रेक्ष्य में तृप्ति और उसके परिवार का संघर्ष पढ़ना भारी कर जाता है

पर हमारे यहां की तमाम तृप्तियों और सीमाओं को उनकी मनचाही जिंदगी जीने का हौसला मिले यही कामना है।
प्रतिभा ने कबिरा सोई पीर है में अपना दिल उडेला है, कलेजा छलनी कर देता है इसका विवरण और इसके किरदार। मन ही मन खूब दुआ तुम्हारे लिए प्रतिभा। सच को सुनना और लिखना हर किसी के बस की बात नहीं है।