- जयंती रंगनाथन
(वरिष्ठ पत्रकार, लेखक )
प्रतिभा कटियार बेहद अजीज है, सालों का रिश्ता है। अंदर-बाहर से बेहद प्यारी। हम कम मिले हैं, पर जब भी मिले हैं, झूम कर, प्यार से और ऐसे कि कोई बेहद पुराना सा रिश्ता हो।
प्रतिभा बहुत प्यारी और गहरी कविताएं लिखती हैं। उसका पहला उपन्यास आया है कबिरा सोई पीर है, लोकभारती पेपरबैक्स से। बिलकुल प्रतिभा की ही तरह है उसका उपन्यास, बोलता हुआ और बहुत कुछ कहता हुआ। जितना लिखा है, उससे भी गहरा।
प्रतिभा ने अपने पहले उपन्यास का विषय साहस से उठाया है, समाज का वो वर्ग, जो सालों से दबा-कुचला रहा है। उस वर्ग की दो बहनें तृप्ति और सीमा अलग-अलग तरह से अपने परिवेश और घुटन से लड़ती हैं। तृप्ति पढ़ने में होशियार, सीमा व्यवहारकुशल। सांवली और औसत दिखने वाली तृप्ति सिविल सर्विस के मुहाने पर खडी है, प्रिलिम्स क्लीयर कर चुकी है। कोचिंग क्लास का साथी सवर्ण लड़का उसे चाहता है। पर जाति की दीवार इतनी लंबी-चौंडी-संकरी है जिससे पार पाना मुश्किल। उपन्यास पढ़ते हुए कई बार मैंने पन्नों को मोड़ कर रख दिया, इस दुआ के साथ कि आगे के पन्नों पर बहनों के साथ सब अच्छा हो। भरे मन के साथ पन्ने खोलती। वहां तो सच की चादर तनी थी। एक गुस्सा सा व्याप्त होने लगा कि हम जिस जमीन पर खड़े हैं, वहां से एक गज नीचे हमने दूसरों को रहने लायक छोड़ा ही नहीं।
इस उपन्यास की कई परतें हैं। किरदारों की भी। आप अंत तक यही मनाते हैं कि सब ठीक हो जाए।
एक बात और, मैंने जो जिंदगी देखी और आसपास देख रही हूं, वहां अब जाति को ले कर इतने खूंखार मसले नहीं रहे। हमारी बिल्डिंग में ही गाड़ी साफ करने वाले आदमी को जब किसी गाड़ी के मालिक ने गाली दी, तो हंगामा हो गया। अंतत: पुलिस आई, गाली देने वाले को उठा कर ले गई और उसे माफी मांगनी पड़ी। इस चेतावनी के साथ कि आगे से वो गाली-गलौच नहीं करेगा। माली, काम वाली, क्लीनर सबके बच्चे घर आते हैं, बिल्कुल हमारे बच्चों की तरह रहते हैं। सबके बच्चे मिल कर खेलते हैं। मैंने कभी किसी माता-पिता को यह कहते नहीं देखा कि तुम माली या ... के बच्चे के साथ नहीं खेलोगे
माहौल बदल रहा है। सकारात्मक बदलाव।
इस समाज का सालों से हमें इंतजार था
बड़े पदों पर एससी एसटी काम कर रहे हैं, पूरी इज्जत के साथ।
किसकी हिम्मत है कि उनके कहे की अवहेलना करे
यह भी अहम बात है कि गांव-कस्बों में दलितों खासकर लड़कियों के साथ होने वाली नृशंस घटनाओं की खबर लगभग रोज अखबारों में छपती हैं। दिल दहलाने वाली। खून खौलता है कि कैसे उन्हें बचाया जाए
ऐसे परिप्रेक्ष्य में तृप्ति और उसके परिवार का संघर्ष पढ़ना भारी कर जाता है
पर हमारे यहां की तमाम तृप्तियों और सीमाओं को उनकी मनचाही जिंदगी जीने का हौसला मिले यही कामना है।
प्रतिभा ने कबिरा सोई पीर है में अपना दिल उडेला है, कलेजा छलनी कर देता है इसका विवरण और इसके किरदार। मन ही मन खूब दुआ तुम्हारे लिए प्रतिभा। सच को सुनना और लिखना हर किसी के बस की बात नहीं है।