फिर लगता है सब कहा जा चुका है
तो सब कहे जा चुके को सुनने पर ध्यान लगाती हूँ
और ध्यान बिना कहे हुए को सुनने की ओर चल पड़ता है
उन आवाजों की ओर जिनके पाँव नहीं
उन आवाजों की ओर जो
भटकती रहती हैं देह के भीतर
जेहन के भीतर भी
हम यह मानने को भी तैयार नहीं
कि एक बहुत बड़े वर्ग की
कोई आवाज ही नहीं है अब तक
कुछ आत्मश्लाघा में मरे जा रहे हैं कि
मैं ही मैं हूँ जबकि
इस मैं का कोई अर्थ नहीं सचमुच
कुछ मरे जा रहे हैं सत्ता के लोभ में
कुछ संसाधनों की होड़ में
वो जो अभी-अभी चाय पीकर गया है न साथ में
जो हंस रहा था जोर-जोर से
जिसकी गिटार की धुन पर झूम रहे थे सब
वो भी जाने कबसे मर रहा था धीरे-धीरे
हमने सुनी नहीं आवाजें मरने की
सिर्फ शोर सुना और फिर एक रोज कहा
'अरे, किसी से कुछ कहा क्यों नहीं...
हमसे ही कहा होता'
इन सबमें सबसे प्यारे हैं वो
जो मरे जा रहे हैं प्यार में
जिनका कहीं कोई जिक्र नहीं
नहीं बचा है ज्यादा फर्क
हत्या और आत्महत्या में
जीना कौन नहीं चाहता भला
लेकिन इस दुनिया को जीने लायक
बनाने के लिए
हमने खुद किया क्या है आखिर?
कि एक बहुत बड़े वर्ग की
कोई आवाज ही नहीं है अब तक
आवाजें जो कहती हैं
भूख लगने पर रोटी छीन कर खाना
अपराध नहीं होना चाहिए
भूख लगने पर रोटी छीन कर खाना
अपराध नहीं होना चाहिए
आवाजें जो पूछती हैं
तुम्हारे भीतर धधकती हिंसा की लपटों पर
क्या कोई असर नहीं डालते
मन्त्र, अजान, गुरुबानियाँ.
लाठियां भांजते लोग
अपने बच्चों को किन हाथों से छूते होंगे
जब इनके बच्चे इन्हें छूते होंगे
तो उन बच्चों की निगाहों से कैसे बच पाते होंगे
जिन्हें अनाथ किया अपने ही हाथों से
तुम्हारे भीतर धधकती हिंसा की लपटों पर
क्या कोई असर नहीं डालते
मन्त्र, अजान, गुरुबानियाँ.
लाठियां भांजते लोग
अपने बच्चों को किन हाथों से छूते होंगे
जब इनके बच्चे इन्हें छूते होंगे
तो उन बच्चों की निगाहों से कैसे बच पाते होंगे
जिन्हें अनाथ किया अपने ही हाथों से
ये दो तरह की हत्याओं का दौर है
एक मार-मार कर मार डालने का
दूसरा मर जाने के सिवा
कोई रास्ता ही न छोड़ने का
लोग मर रहे हैं, लाठियों से, गोलियों
एक मार-मार कर मार डालने का
दूसरा मर जाने के सिवा
कोई रास्ता ही न छोड़ने का
लोग मर रहे हैं, लाठियों से, गोलियों
बिना इलाज के अस्पतालों में
लोग मर रहे हैं
सडकों में, दफ्तरों में, बाज़ारों में, कारखानों में
लोग मर रहे हैं
सडकों में, दफ्तरों में, बाज़ारों में, कारखानों में
लगातार मर रहे हैं लोग
कि जैसे लाशों के ढेर से घिरी हूँ
स्वप्न से जागती हूँ,
कि जैसे लाशों के ढेर से घिरी हूँ
स्वप्न से जागती हूँ,
हांफती हूँ, पानी पीती हूँ
हकीकत और स्वप्न में कोई फासला नहीं बचा है
बिलखते बच्चों की आवाजें कानों में गूंजती हैं
कोई नाकामियों से हार कर झूल गया है
अभी-अभी फंदे पर
कोई अपमान से टूटकर
बिलखते बच्चों की आवाजें कानों में गूंजती हैं
कोई नाकामियों से हार कर झूल गया है
अभी-अभी फंदे पर
कोई अपमान से टूटकर
कुछ आत्मश्लाघा में मरे जा रहे हैं कि
मैं ही मैं हूँ जबकि
इस मैं का कोई अर्थ नहीं सचमुच
कुछ मरे जा रहे हैं सत्ता के लोभ में
कुछ संसाधनों की होड़ में
वो जो अभी-अभी चाय पीकर गया है न साथ में
जो हंस रहा था जोर-जोर से
जिसकी गिटार की धुन पर झूम रहे थे सब
वो भी जाने कबसे मर रहा था धीरे-धीरे
हमने सुनी नहीं आवाजें मरने की
सिर्फ शोर सुना और फिर एक रोज कहा
'अरे, किसी से कुछ कहा क्यों नहीं...
हमसे ही कहा होता'
इन सबमें सबसे प्यारे हैं वो
जो मरे जा रहे हैं प्यार में
जिनका कहीं कोई जिक्र नहीं
नहीं बचा है ज्यादा फर्क
हत्या और आत्महत्या में
हत्या से पहले आत्म को चिपका देने
से क्या बदल जाता है
से क्या बदल जाता है
जीना कौन नहीं चाहता भला
लेकिन इस दुनिया को जीने लायक
बनाने के लिए
हमने खुद किया क्या है आखिर?
2 comments:
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 18 जुलाई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत ही उम्दा लिखावट , बहुत ही सुंदर और सटीक तरह से जानकारी दी है आपने ,उम्मीद है आगे भी इसी तरह से बेहतरीन article मिलते रहेंगे Best Whatsapp status 2020 (आप सभी के लिए बेहतरीन शायरी और Whatsapp स्टेटस संग्रह) Janvi Pathak
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