Tuesday, March 10, 2020

फेसबुक


लोगों की वॉल पर उतराती
दंगे की तस्वीरें, वीडियो, खबरें
छोड़ रही हैं कसैलापन
व्याकुलता, क्षोभ,पीड़ा
दूर कहीं उदास कोयल
 गा रही है उदासी का राग

हर ओर के लोग दुःख से भरे
कुछ गुस्से से भरे
कुछ सुकून से भी भरे हुए
कुछ हिसाब लगाते कि
इसके मरने पर दुखी हो
उसके मरने पर दुखी क्यों नहीं
इस बच्चे के आंसू से पसीज रहे हो
उस बच्चे के आंसू के वक़्त कहाँ थे

ये लोग थे तो 'एक ओर ही'
अलग-अलग कब हुए
इसका कोई ब्यौरा नहीं

तभी एक सिनेमा का जिक्र
गुजरता है नज़रों से
बदलता है स्वाद
जेहन की जीभ का

कहीं कोई स्त्री
नयी साड़ी वाली फोटुक में लहराती है
किसी की यात्रा की तस्वीरें
नज़रों से अनायास ही टकरा जाती है

कोई प्रेयसी उदासी में पिरो रही है
मेंहदी हसन की गज़ल
'मुझसे ख़फा है तो जमाने के लिए आ...'

किसी ने कविता पाठ ठोंक दिया है
फेसबुक की दीवार पर खूँटी गाड़कर
याद दिलाया एक सन्देश ने उन दोस्तों का जन्मदिन
जिन्हें कभी मिले भी नहीं
अपने करीबियों के जन्मदिन भूल जाने वाले भी
अब भर-भर भेजते हैं बधाई अनजाने लोगों को
पहले डायरियों में लिखा करते थे अपनों के ख़ास दिन

रवाना करने के बाद शुभकामनाओं की खेप
नजर आती है कोई पकवान की तस्वीर
लीजिये रेसिपी भी मांग ली है किसी ने तो
इसके पहले कि जुबान पर टिकता पकवान का स्वाद
बड़े साहित्यिक जलसे की तस्वीरें नुमाया होती हैं
कौन क्या बोल, किसने क्या सुना से ज्यादा
किससे मिले, कितनी तस्वीरें खिंची
के दृश्य आँखों में झरते चले जाते हैं

निपटा के घर के काम एक स्त्री
कोने में बैठी है उदास
देख रही है आकाश
हालाँकि किताब का कोई अधखुला पन्ना
फडफडा रहा है वहीँ उसके पास
बीच-बीच में बाज़ार दिखाने लगता है
आपकी पसंद की साड़ियाँ, शर्ट, जूते
आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस तो
पति और प्रेमी से बेहतर निकला
इसे तो हमारी पसंद के रंग और पैटर्न भी पता हैं
बाज़ार की ओर
चल पड़ती हैं उँगलियाँ अनचाहे ही
उलझी रहती हैं कुछ देर

त्योहार आ ही गया सर पर
रंग ही रंग छाने लगा है दीवारों पर
इसके पहले कि ठहरे कोई रंग
जीवन में, जेहन में
फेसबुकिया हलचल बदलती रहती है
मिजाज़ मन का

वो एक ही पल की बात है जब
रंग और बेरंग दोनों ही दुनिया में
थिरकती हैं उँगलियाँ
मुस्कुराने और रोने वाले ईमोजी
सेकेंड्स के भीतर उँगलियों से रिहा होते हुए
अवतरित होते हैं वॉल पर

कोई नोटिफिकेशन फिर थमा देता है उदासी
कि दंगों में मरने वालों की संख्या बढ़कर....हो गई है
राष्ट्रवाद फिर से मनुष्यता से टकराने को
बाहें कसने लगा है फेसबुक पर...

6 comments:

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 11 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12.03.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3638 में दिया जाएगा। आपकी उपस्थिति मंच की गरिमा बढ़ाएगी

धन्यवाद

दिलबागसिंह विर्क

Sweta sinha said...

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना गुरूवार १२ मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

विश्वमोहन said...

बहुत सुंदर।

Jyoti Singh said...

समय बदला ,रंग ढंग भी बदला ,सुंदर फेसबुक वर्णन