Thursday, May 16, 2019

मेरा कोना भीग रहा है


जैसे किसी सपने में आँख खुली हो. जैसे मौन में कोई बात चली हो. खामोश बात धीमे धीमे सुबह की ओसभरी घास पर चलते हुए. मैं इस मौन को सुन रही हूँ. ठीक ठीक सुन नहीं पा रही हूँ शायद. जितना सुन पा रही हूँ उसमें असीम शांति है.

सामने लीची, आम और अनार के पेड़ भीग रहे है. मेरा शहर बरस रहा है. भीतर भी, बाहर भी. भीतर ज्यादा बरस रहा है. भीतर सूखा भी ज्यादा हो गया है. मैं बाहर झरती बारिश की आवाज में डूबी हूँ. सामने जो गार्डन है जिसकी बेंच पर रात में बैठकर कुछ देर खुद से बात करना अच्छा लगता है वो भी भीग रही है. कबूतर भीग रहे हैं और पांखें खुजला रहे हैं. झूले भीग रहे हैं. बच्चे स्कूल गये हैं. स्त्रियाँ घर की साफ सफाई में लगी हैं. ऑफिस जाने वाले ऑफिस जाने की तैयारी में लगे हैं. किसी के पास बारिश को सुनने की फुर्सत नहीं. हालाँकि सूखा सबके भीतर है. मेरी चाय के पास मेरे प्रिय कवि हैं विनोद कुमार शुक्ल 'कविता से लम्बी कविता' बनकर. जीवन से लम्बा जीवन, बारिश से ज्यादा बारिश, उदासी से ज्यादा उदासी और सुबह में ज्यादा सुबह का उगना महसूस हो रहा है.

बरसों की थकान है पोरों में. बहुत सारे सवाल हैं आसपास. ढेर उलझनें, लेकिन इस पल में कुछ भी नहीं. खुद मैं भी नहीं. स्त्री के लिए एक कोना होना जरूरी है. स्त्रियों अपने लिए, गहना, जेवर, महंगी साड़ियाँ बाद में लेना पहले माँगना या ले लेना अपना एक कोना. यह कोना जीवन है. इस कोने में हमारा होना बचा रहता है. आज जीवन के मध्य में एक सुबह के भीतर खुद को यूँ देखना मीठा लग रहा है. इस इत्ती बड़ी सी दुनिया में यह मेरा कोना है, मेरा घर. मेरा कोना बारिश में भीग रहा है...सूखा बहुत हो गया था सचमुच. यह भीगना सुखद है.

Wednesday, May 1, 2019

घर


रंग भरे जा रहे हैं दीवारों पर. दीवारें जिन पर मेरा नाम लिखा है शायद. कागज के एक पुर्जे पर लिखा मेरा नाम जिस पर लगी तमाम सरकारी मुहरें. जिसके बदले मुझे देने पड़े तमाम कागज के पुर्जे. 'घर' शब्द में जितना प्रेम है शायद वही प्रेम दुनिया के तमाम लोगों को घर बनाने की इच्छा से भरता होगा. मेरे भीतर ऐसी कोई इच्छा नहीं रही कभी. बड़े घर की, बड़े बंगले की, गाडी की, ये सब इच्छाएं नहीं थीं कभी. लेकिन इन सब इच्छाओं के न होने के बीच यह भी सोचती हूँ कि मेरी इच्छा क्या थी आखिर. जिन्दगी के ठीक बीच में आकर यह सोचना बहुत अजीब है कि मेरी कोई इच्छा ही नहीं थी. कोई सपना भी नहीं. बस इतना कि जो लम्हा है उसे भरपूर जिया जाय. जीवन में हरियाली खूब हो, आसपास कोई नदी हो, समन्दर हो, चिड़िया हो. शायद चारदीवारों वाले घर से बड़ी ख्वाहिश थी यह. हर मोहब्बत भरी आवाज मुझे मेरा घर लगने लगती थी.

आज मेरा खुद का घर है एक चिड़ियों की आवाजों से भरे इस खूबसूरत शहर में. मुझे इस शहर की हवाओं से प्यार है. यहाँ की सड़कों से प्यार है. मैंने कुछ नहीं किया सच, यह इस शहर से हुए प्यार का असर ही रहा होगा जिसने पहले आवाज देकर बुलाया और फिर इसरार करके बिठा लिया. मैं ठहर गयी हूँ इस शहर में. मैं चाहती हूँ कि दुनिया के किसी भी कोने में कोई भी किसी मोहब्बत भरी आवाज को अनसुना न करे. हर पुकार कोई जवाब आना चाहिए.

भीतर कई तरह के मंथन चल रहे हैं. दीवारों पर रंग चढ़ाये जा रहे हैं. मेरी पसंद के रंग. वो मेरी पसंद का रंग कौन सा है पूछ रहे हैं कौन सा रंग मैं कहती हूँ, जंगल, नदी, सवेरा. वो मेरा मुंह देखते हैं. मैं झेंप जाती हूँ. मुझे दुनियादारी नहीं आती. जब प्यार आता है बहुत तो रोना भी आता है बहुत. दुःख में कम आता है रोना. प्यार में बहुत आता है, फूट फूटकर रोने को जी चाहता है. हालाँकि जब कोई रास्ता नहीं दिखाई देता आगे का तब भी रोना आता है, बिना आंसुओं वाला रोना. ये वाला रोना बहुत तकलीफ देता है.

आजकल कई तरह का रोना साथ रहता है. हर वक़्त. इसमें कोई भी सुख का रोना नहीं है. हालाँकि मेरा घर मेरे रंग में ढलने को तैयार है.

मैं उस घर की मोहब्बत में हूँ जो कागजों में मेरा नहीं था. लेकिन इसी घर ने मुझे सहेजा भी, सम्भाला भी. मैं एक सहमी सी नन्ही बच्ची की तरह आई थी यहाँ. एक सूटकेस लिए. इस घर में मैं बड़ी हुई. चलना सीखा, बोलना सीखा. इसकी दीवारों में मेरे आंसुओं की नमी है. एक-एक कोना मुझे हसरत से देख रहा है. यह घर मेरे जीवन का टर्निंग प्वाइंट है. जब कोई नहीं था तब इसने हाथ थामा. रोने की जगह बना, हंसने की वजह भी. अब यह घर मेरा नहीं रहेगा. इस घर की दीवारों पर मेरी पसंद के रंग भी नहीं थे. लेकिन इस घर ने मुझे बहुत दुलराया है. छूटना आसान नहीं होता. लेकिन छूटना तय होता है.

अभी उस नए घर से मेरा रिश्ता बना नहीं है. सिर्फ कागजों पर बना है रिश्ता. यह बिलकुल उसी तरह है कि ब्याह हो गया है, अभी प्यार हुआ नहीं है. उम्मीद है प्यार भी हो जायेगा. लेकिन एक प्यार जो बिना रिश्ते के हो चुका वो कभी नहीं जायेगा जीवन से. इस घर से प्यार घर जो असल में मेरा नहीं था लेकिन शायद घर भी जानता होगा कि वो मेरा ही था हमेशा से...छूटना आसान नहीं. जाने क्या क्या छूट रहा है हालाँकि रात दिन सामान पैक हो रहा है...मैं जानती हूँ कुछ भी पैक नहीं हो पायेगा. सब छूट जाएगा...