Saturday, October 17, 2015

चुप रहना गुनाह है


चीखो  दोस्त
कि इन हालात में
चुप रहना गुनाह है

चुप भी रहो दोस्त
कि लड़ने के वक्त में
महज बात करना गुनाह है

फट जाने दो गले की नसें
अपनी चीख से
कि जीने की आखिरी उम्मीद भी
जब उधड़ रही हो
तब गले की इन नसों का
साबुत बच जाना गुनाह है

चलो दोस्त
कि सफर लंबा है बहुत
ठहरना गुनाह है

कहीं नहीं जाते जो रास्ते
उनपे बेबसबब दौड़ते जाना
गुनाह है

हंसो दोस्त
उन निरंकुश होती सत्ताओं पर
उन रेशमी अल्फाजों पर
जो अपनी घेरेबंदी में घेरकर, गुमराह करके
हमारे ही हाथों हमारी तकदीरों पर
लगवा देते हैं ताले
कि उनकी कोशिशों पर
निर्विकार रहना गुनाह है

रो लो दोस्त कि 
बेवजह जिंदगी से महरूम कर दिये गये लोगों के
लिए न रोना गुनाह है.

मर जाओ दोस्त कि
तुम्हारे जीने से
जब फर्क ही न पडता हो दुनिया को
तो जीना गुनाह है

जियो दोस्त कि
बिना कुछ किये
यूं ही
मर जाना गुनाह है....

4 comments:

Archana Chaoji said...

बिना कुछ किए यूं ही मर जाना गुनाह है ...... कितनी बड़ी बात !॥हम आए हैं सिर्फ जीने के लिए

Onkar said...

बहुत सुंदर प्रस्तुति

Indira Mukhopadhyay said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है।

Unknown said...

अति सुन्दर