Saturday, March 28, 2015

मुकम्मल इश्क की दास्तां...


फकीर की दुआ सी आंच तेरी याद की...
बढ़ती जाती है, बढ़ती जाती है...
कभी फाहे सी गिरती भी है दूरियों पर

जख्मों को सीने में कोई मजा नहीं.

जिंदगी बरसती है...दर्द की सिहरन के संग.
भला कैसे कोई बुझाये रौशन दर्द की ये शमां....

भूल जाना कोई कमाल नहीं...
याद न आना कमाल है...
रहे हम दोनों ही अनाड़ी
याद आते रहे...आते रहे...

वापसी के कदमों की आहटों में विदा की पीड़ा दर्ज जरूर हुई
लेकिन दिन के हंसते हुए चेहरे पर हमने आंसू नहीं मले...

रात के कंधे पर सर रखकर सिसकने की सजा जो हो सो हो...
दिन के आंचल को उदासियों से बचाया जरूर

सिगरेट के कश सी तेरी याद धुएं में उड़ती नहीं...
जबान पर बैठी रहती है कसैला स्वाद बनकर...
तलब बनकर...

दर्द हमेशा सिसकियों में नहीं रहता,
उसने खिलना, महकना, संवरना भी सीखा है

शोर के सैलाब में डूबकर बचा लाये थे जो बूंद भर खामोशी
वो तावीज बनी गले में लटकी है...

इश्क बीते हुए लम्हों के आशियाने में सांस-सांस मुकम्मल है...

न होने में तेरा होना
है मुकम्मल इश्क की दास्तां...

खाली झूले पर झूलती तेरी याद
बढ़ाती है पींगे....बेहिसाब...
आंखों का सावन हरा ही रहता है हरदम...


6 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

श्री राम नवमी की हार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (29-03-2015) को "प्रभू पंख दे देना सुन्दर" {चर्चा - 1932} पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

Onkar said...

सुन्दर रचना

dr.mahendrag said...

न होने में तेरा होना
है मुकम्मल इश्क की दास्तां...
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति

Harshita Joshi said...

सुन्दर रचना

दिगम्बर नासवा said...

खूबसूरत बिम्ब सजोये हैं इस खूबसूरत नज़्म में ... खाली झूले में झूलती यादों के साथ ...

Anujaa Shukla said...

जब तक नहीं रची...नहीं रची....
जब रची तो खूब रची...
वाह खूब जियो प्रतिभा...