कन्धों के एकदम करीब आ जाता है
सड़कें ओढ़ लेती हैं
सुर्ख फूलों वाली सतरंगी चुनर
सुर्ख फूलों वाली सतरंगी चुनर
बच्चो की शरारतों
में लौट आती है मासूमियत
स्त्रियाँ बिना किसी त्यौहार के
करने लगी हैं भरपूर सिंगार
ट्रैफिक के शोर में भी
घुलने लगता है कोई राग
कोई मेज पर रख जाता है
फाइलों का नया ढेर
उन पर भी उगने लगती है
गुलाब के फूलों की खुशबू
पोपले मुंह वाली बुढ़िया
लगने लगती है
दुनिया की सबसे हसीन औरत
अजनबी चेहरों पर उमड़ने लगता है प्यार
किसी भी मौसम की डाल पर
उगने लगता है बसंत
दर्द सहमकर दूर से देखते हैं
कभी न गुम होने वाली मुस्कुराहटों को
दुनिया की तमाम सभ्यताएं पूरी असभ्यता से
सिखाती हैं उन्हें संवेदना के पाठ
कि देखो इतना मुस्कुराना भी ठीक नहीं
मानवीयता के खिलाफ है इस वक़्त
छेड़ना मोहब्बत का राग
कि देखो इतना मुस्कुराना भी ठीक नहीं
मानवीयता के खिलाफ है इस वक़्त
छेड़ना मोहब्बत का राग
वो थामते हैं एक दूसरे का हाथ
मुस्कुराते हैं और दोहराते हैं
खुद से किया हुआ वादा कि
सबसे मुश्किल वक़्त में हम बोयेंगे
इस धरती पर प्रेम के बीज
नफरत की जमीन में उगायेंगे प्यार
तोड़ेंगे दुःख की तमाम काराएं
और रचेंगे स्रष्टि के लिए
सबसे मीठा संगीत
चाहे तो कोई शासक
ठूंस दे उन्हें जेलों में फिर भी
झरता ही रहेगा आसमान से प्रेम
खिलखिलाता ही रहेगा बचपन
संगीनों के साये में
खिलते ही रहेंगे प्यार के फूल
कोई नहीं जान पायेगा कभी कि इस दुनिया को
सबसे नकारा लोगों ने बचाया हुआ है
नहीं दर्ज होगा इतिहास के किसी पन्ने पर
दुःख, पीड़ा, संत्रास के सबसे कठिन वक़्त में
किसके कारण धरती फूलों से भर उठी थी।।
2 comments:
bahut sundar ....
atulniy-***
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