Wednesday, February 13, 2013

और यूँ भी नहीं कि वक़्त नहीं है...


लम्बे समय से एक अजीब दुविधा में हूँ। यूँ तो दुविधा हमेशा ही रहती है लेकिन इन दिनों कुछ ज्यादा ही। ये दुविधा ऐसी है कि लगता है मेरे शब्दों में से अर्थ गायब हो गए हैं। यानि कुछ कह पाने की रही बची उम्मीद भी जाती रही। कह के कहना कभी आया ही नहीं था, थोडा बहुत लिखके कहने की कोशिश होती थी वो भी लगातार कम होती जा रही है। लेकिन ये कोई अजीब बात नहीं। न ही इस बात का कोई दुःख है। अजीब बात तो ये है कि बहुत शांति है इन दिनों। हालाँकि व्यस्तता बहुत है, ऐसा आजकल कहती हूँ सबसे।

न जाने कितनी मिस कॉल पड़ी हैं, कितने मैसेज जिनके जवाब नहीं दिए गए, कितने लोग होल्ड पर इंतजार कर रहे हैं , कितनी किताबों के खुले पन्ने मेरे वापिस लौटने का इंतजार करते-करते ऊंघने लगे हैं। कितनी बातें दिमाग में चल रही हैं, एक साथ। सिरहाने समीछा के लिए भेजी गयी किताबों का ढेर है, सामने उन किताबों का इंतजार जिन्हें मैं कबसे पढना चाहती हूँ। सबको एक ही जवाब देती हूँ की रुको, अभी घनी व्यस्तता है। लेकिन ये जवाब खुद को नहीं दे पाती। जाने क्यों लगता है कि व्यस्तता नहीं है ये, बचाव है। इन व्यस्तताओं में ढँक मूँद को खुद को रख दिया है। सच कहूं तो लगता है सबसे ज्यादा फुर्सत है इन दिनों। दिमाग शांत है और अमावस का चाँद भी हथेलियों में एक टुकड़ा नींद का दबा देता है चुपके से।

व्यस्त होने के लिए बहुत काम का होना तो सिर्फ बहाना है, असल में घनघोर व्यस्तताओं को भी अपने खालीपन से रौंदा जा सकता है।
(तस्वीर- साभार गूगल)

9 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सच ..... कितना कुछ किया जाना यूँ ही हर दिन टलता जाता है, और हम जानते भी हैं कि हम व्यस्त नहीं, हम ही ये टालमटोल कर रहे हैं :) शुभकामनायें

कालीपद "प्रसाद" said...

यह वास्तविकता से पलायन है और कभी कभी मज़बूरी भी
Latest post हे माँ वीणा वादिनी शारदे !

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

कुछ नहीं करना
भी है कर्म में विचरना

Pratibha Katiyar said...

बात तो इसके उलट है विकास जी। बाहरी व्यस्तता और भीतरी खालीपन...

संध्या शर्मा said...

बाहर आइये इन खालीपन की व्यस्तताओं से... भर दीजिये सुन्दर शब्दों और भावों का जल खाली पड़ी गगरियों में... शुभकामनायें

ब्लॉग बुलेटिन said...

एक कोकिला से दूसरी कोकिला तक - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

***Punam*** said...

हालत कुछ ऐसे ही
इधर भी हैं...
उधर भी हैं...!!

प्रवीण पाण्डेय said...

यदि शान्ति से बैठने में चित्त स्थिर होता है तो कुछ माह या वर्ष ऐसे ही बिताये जा सकते हैं।

Sadhana Vaid said...

कभी-कभी यह रिक्तता और अकर्मण्यता एक सुन्दर सार्थक सृजन के लिए सशक्त पृष्ठभूमि बनाने का काम चुपके से करती रहती है ! हमें इंतज़ार रहेगा उस सृजन का ! वसंतपंचमी की आपको हार्दिक शुभकामनाएं !