जादुई एहसास रू -ब-रू
वो बीतते बसंत के दिन थे. अप्रैल 1926 की कोई शाम रही होगी शायद. अनमने दिनों ने अभी अपनी गठरी बांधी भी नहीं थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई थी. बोरिस परस्तेनाक (रूस का महान कवि) ने अनमने मन से दरवाजा खोला और डाकिये से डाक ली. डाकिये ने बोरिस को दो खत पकड़ाये और बोझिल से दिन को अपने कांधों पे लादकर चलता बना.
वो बीतते बसंत के दिन थे. अप्रैल 1926 की कोई शाम रही होगी शायद. अनमने दिनों ने अभी अपनी गठरी बांधी भी नहीं थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई थी. बोरिस परस्तेनाक (रूस का महान कवि) ने अनमने मन से दरवाजा खोला और डाकिये से डाक ली. डाकिये ने बोरिस को दो खत पकड़ाये और बोझिल से दिन को अपने कांधों पे लादकर चलता बना.
परस्तेनाक ने पहला पत्र खोला. यह मारीना त्स्वेतायेवा का खत था. उसने इस खत में अपनी कविता 'द एंड' के बारे में कुछ दरयाफ्त की थी इस खत में. दूसरा खत था उसके पिता लिओनिद ओसिपोविच परस्तेनाक का जो कि म्यूनिख में रहते थे. वो मशहूर जर्मन कवि रिल्के के मित्र थे और उन्होंने अपने बेटे को इस खत में लिखा कि रिल्के ने परस्तेनाक की कविताओं की तारीफ की है. बोरिस रिल्के की कविताओं के घनघोर प्रशंसक थे और रिल्के द्वारा उनकी कविताओं की तारीफ बहुत मायने रखती थी. पिता के इस खत के बाद उनका मन हुआ कि क्यों न रिल्के को पत्र लिखा जाये. 12 अप्रैल 1926 को बोरिस ने आखिर रिल्के को पत्र लिखा. यह पत्र उन्होंने जर्मन में लिखा. बोरिस का जर्मन भाषा पर अच्छा अधिकार था. उन्होंने लिखा-
'मेरे प्यारे और महान कवि रिल्के,
मुझे नहीं पता कि इस खत में क्या लिख पाऊंगा. मुझे नहीं पता कि मैं इस खत के जरिये आप तक अपना प्यार, सम्मान, दिल की गहराइयों से आपके प्रति महसूस की गई भावनाओं को संप्रेषित कर पाऊंगा या नहीं. लेकिन आज मैं जो कुछ भी हूं, जैसा मैं सोचता हूं, जैसा मैं महसूस करता हूं वो सब आपका दिया हुआ है. आपको पढ़ते हुए मैंने आपको अपने भीतर बूंद-बूंद समेटा है. मेरा लिखा हर शब्द अगर वो किसी लायक है तो वो आपकी ही देन है. आपको पढ़ते हुए मैं हमेशा एक जादुई अहसास से गुजरता हूं और मेरा पूरा वजूद एक सिहरन महसूस करता है.
बोरिस आगे लिखते हैं-
जिस दिन मुझे अपने पिता द्वारा भेजे गये आपके मेरे प्रति उदार शब्द मिले ठीक उसी दिन मुझे एक ऐसी कविता पढऩे को मिली जिसे पढ़कर मैं हतप्रभ हूं. विश्वास करिये, रूस में ऐसी कविताएं लिखने वाले बहुत कम लोग हैं. और जानते हैं मेरे प्रिय कवि, यह कविता किसकी है. यह कविता है यहां की मशहूर कवियत्री मारीना त्स्वेतायेवा की. वो जन्मजात कवियत्री है. बेहद प्रतिभाशाली और संवेदनशील है वो. इन दिनों वो पेरिस में रह रही है. प्रिय रिल्के मुझे माफ करना, लेकिन मैं चाहता हूं कि अपनी कविताओं पर आपकी टिप्पणियां पाकर जो खुशी मुझे महसूस हुई है वही खुशी इस कवियत्री को भी मिले. आप इसे मेरी धृष्टता कह सकते हैं लेकिन मेरे प्रिय मैं जानता हूं आप मेरी संवेदना और भावना भी समझ सकेंगे. मैं आपको मरीना की कुछ कविताएं भेज रहा हूं. साथ ही मैं आपसे गुजारिश करता हूं मेरे प्रिय रिल्के कि आप अपना कविता संग्रह 'डियोनो एल्जिस' जिससे मैंने हमेशा प्रेरणा ली है उसे अपने स्नेह के साथ मरीना के पते पर भेज दें. यह हम दोनों के लिए बहुत सम्मान की बात होगी.
उम्मीद है मेरा बहुत सारा प्यार और सम्मान आप तक पहुंचेगा और आपका स्नेह हम तक.
आपका
बोरिस
बोरिस आगे लिखते हैं-
जिस दिन मुझे अपने पिता द्वारा भेजे गये आपके मेरे प्रति उदार शब्द मिले ठीक उसी दिन मुझे एक ऐसी कविता पढऩे को मिली जिसे पढ़कर मैं हतप्रभ हूं. विश्वास करिये, रूस में ऐसी कविताएं लिखने वाले बहुत कम लोग हैं. और जानते हैं मेरे प्रिय कवि, यह कविता किसकी है. यह कविता है यहां की मशहूर कवियत्री मारीना त्स्वेतायेवा की. वो जन्मजात कवियत्री है. बेहद प्रतिभाशाली और संवेदनशील है वो. इन दिनों वो पेरिस में रह रही है. प्रिय रिल्के मुझे माफ करना, लेकिन मैं चाहता हूं कि अपनी कविताओं पर आपकी टिप्पणियां पाकर जो खुशी मुझे महसूस हुई है वही खुशी इस कवियत्री को भी मिले. आप इसे मेरी धृष्टता कह सकते हैं लेकिन मेरे प्रिय मैं जानता हूं आप मेरी संवेदना और भावना भी समझ सकेंगे. मैं आपको मरीना की कुछ कविताएं भेज रहा हूं. साथ ही मैं आपसे गुजारिश करता हूं मेरे प्रिय रिल्के कि आप अपना कविता संग्रह 'डियोनो एल्जिस' जिससे मैंने हमेशा प्रेरणा ली है उसे अपने स्नेह के साथ मरीना के पते पर भेज दें. यह हम दोनों के लिए बहुत सम्मान की बात होगी.
उम्मीद है मेरा बहुत सारा प्यार और सम्मान आप तक पहुंचेगा और आपका स्नेह हम तक.
आपका
बोरिस
(इसके बाद मिला मरीना को रिल्के का पहला ख़त. फिर क्या हुआ...इंतजार..)
8 comments:
बहुत ही सुंदर शैली चुनी है। अगली पोस्ट का इंतजार रहेगा।
कल से इंतजार था इस कड़ी का ..दिव्य..और ढेर सारा कौतूहल....
उफ.. टिप्पणियाँ तब भी थीं।
इस ऐतिहासिक सामग्री को पढवाने का आभार।
---------
विलुप्त हो जाएगा इंसान?
ब्लॉग-मैन हैं पाबला जी...
सचमुच पढ़कर एक ऐसी दुनिया में खो जाने का अहसास हो रहा है, जिसमें इश्क की चासनी हो। मैं अगले का इंतजार कर सकता हूं लेकिन इतना पढ़ना भी मेरे लिए अथाह है। इसे मन में समेट रहा हूं। पोस्ट की अंतिम पंक्ति मेरे लिए सूफी संगीत है, जहां मुझे पढ़ने को मिला- "उम्मीद है मेरा बहुत सारा प्यार और सम्मान आप तक पहुंचेगा और आपका स्नेह हम तक...।" आज के दौर में हमें इसी अहसास की कमी खलती है।
फिर ?
intzar ki bechaini badha gaya yah khat..............
बूँद-बूँद अमृत...
शुक्रिया...शुक्रिया...शुक्रिया...!!!
Post a Comment