समंदर के किनारे गीली रेत के छोटे-छोटे बेहद खूबसूरत से गोले बनाना लड़की को बहुत पसंद था. वो अपने नन्हे-नन्हे हाथों से समंदर की गीली रेत को समेटती. उन्हें सुंदर सा गोल-गोल आकार देती. अपने जीवन की सारी कलाएं, सारा कौशल वो उन रेत के गोलों को बनाने में लगा देती. शिल्प और मूर्तिकला के तमाम नये आयाम यहां गढ़े जाते प्रतीत होते. अजंता और कोणार्क भी इन नये कला आयामों को देखने को आतुर हो उठते. फिर लड़की अपना मुंह उन गोलों के करीब ले जाती. मानो कुछ कह रही हो. जब वो अपना मुंह रेत के गोलों के करीब ले जाती, तो सूरज की किरन सीधे उसके माथे पर होती थीं. उसका माथा चमक उठता. पसीने की बूंदों पर सूरज की छेड़खानी सौंदर्य की नई परिभाषाएं गढऩे लगती. लड़की के खुले हुए लंबे बाल उसके आधे गालों को ढंक लेते थे. रेत के गोलों के करीब जाते हुए उसकी आंखों में गजब की चमक आती थी. मानो उसे अपने जीवन का सबसे बड़ा सुख मिल गया हो. तभी समंदर की कोई लहर आती और लड़की के हाथ से बने उस रेत के गोले का बहाकर अपने साथ ले जाती. लड़की उस लहर को प्यार से देखती. मानो कह रही हो कि मुझे भी बहा ले चलो ना?
वो फिर से नया गोला बनाती. फिर अपना मुंह गोले के करीब ले जाती और उसकी आंखों में फिर से चमक आ जाती. फिर कोई लहर उसे बहाकर ले जाती. लड़का उसे यह सब करते हुए रोज देखता था. लेकिन उसने उससे इस बारे में कभी पूछा नहीं. उसे लड़की को यूं देखना इतना अच्छा लगता था कि वो कुछ भी सवाल करके उसकी तन्मयता को तोडऩा नहीं चाहता था. वो बस उसके खुले बालों के बीच से झांकते आधे चेहरे पर पड़ती सूरज की किरणों को देखकर असीमित सुख महसूस करता था.
लड़की अक्सर खूब बोला करती थी. दिन भर उसके पास कहने को कुछ न कुछ होता था. लड़का हमेशा उसे सुना नहीं करता था. वो उसके बोले हुए को देखा करता था. उसके शब्दों से बेपरवाह लड़का बस उसके भावों की छुअन को महसूस करता था.
लड़की दुनिया जहान की बातें करती थी लड़के से. उसका बचपन, उसकी सखियां, उसके प्यारे से अधूरे ख्वाब, मां से कहासुनी, ऑफिस के झमेले न जाने क्या-क्या. लड़का सचमुच सुनता नहीं था सब. बस देखता था. मन ही मन सोचता था लड़कियां इतना बोलती क्यों हैं? लड़की इन सबसे बेफिकर बस बोलती ही जाती थी. लेकिन जब वो समंदर के किनारे रेत के गोले बना रही होती थी, तो वो कुछ भी नहीं बोलती थी. एक शब्द भी नहीं. लड़के ने एक दिन उससे पूछा सारा दिन इतना बोलती हो, यहां आकर क्यों मौन हो जाती हो. कोई जादू टोना का चक्कर है क्या. लड़की मुस्कुराई.
हां, जादू ही तो है. तुम नहीं समझोगे?
लड़का सचमुच नहीं समझा. वो समझना भी नहीं चाहता था.
वो रोज जैसी ही एक शाम थी. उस दिन सूरज ने हाफ डे ले लिया था. आसमान पर बादलों की ड्यूटी लग गई थी. लड़की गोले बना रही थी. आज उसका चेहरा उदास था. उसकी आंखों में चमक नहीं थी. उसने अपने खुले बालों को समेटकर जूड़ा बना लिया था. वो रेत को समेट रही थी कि तभी बूंदों का हमला हो गया. लड़के ने लड़की से चलने को कहा. वो मानी नहीं. उसने अपनी भीगी पलकों से लड़के को देखा और कहा, आज बताती हूं तुम्हें उन गोलों के खेल का राज. उन रेत के गोलों के बीच मैं अपनी कोई अधूरी ख्वाहिश छुपा देती थी. उससे कान में कहती थी कि तू चल मैं आयी. तुम कभी नहीं जान पाये कि मैंने अपनी कितनी खामोशियों को बोल-बोलकर छुपाया है. वो सारी खामोशियां, सारे ख्वाब, सारी ख्वाहिशें सब मैं समंदर की लहरों को सौंप चुकी हूं. वे अब सदा के लिए इस समंदर में सुरक्षित हैं. मैं अपने मन का यह बोझ तुम्हें नहीं देना चाहती थी. लड़का हैरत से लड़की को सुन रहा था. इतने सालों से जिस लड़की को जानता था, वो इस कदर अनजानी लग रही थी उसे. उसकी आंखें छलक पड़ीं. तभी उसने एक बड़ी सी लहर को करीब आते देखा. लड़की अब वहां नहीं थी. एक बड़ा सा रेत का गोला था. उस पर कोई मोती चमक रहा था. वो लड़के की आंख का आंसू था. लहर उस गोले को बहाकर ले गई.
समंदर में अब भी न जाने कितने चमकते हुए मोती छुपे हैं. न जाने कितने शंख, सीपी. कुछ लड़के के आंसू, कुछ लड़की की ख्वाहिशें...ये लहरें अब भी हर प्रेमी जोड़े को लुभाती हैं...
5 comments:
समुन्दर की लहरों में एक अजब सा सम्मोहन है, हर आती लहर कुछ नया ही कह जाती है।
प्रतिभा जी आपकी ज़्यादातर कहानियों की किरदार ये जो लड़की है ना... जाने क्यूँ बहुत अपनी सी लगती है... आपकी कहानियां पढ़ते हुए कई बार ख़ुद को ही कभी साहिल के किनारे रेत के गोलों से बातें करते तो कभी जंगल में जुगनू पकड़ते और कभी पलाश के फूलों से बातें करते पाया है...
लाख लिखते रहो नाम अपने लहर
सागरों की है सागर में ढल जाएगी.
sundar!
बेहतरीन ।
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