Sunday, September 5, 2010

थोड़ी बहुत तो जेहन में नाराजगी रहे


बदला न अपने आपको जो थे वही रहे
मिलते रहे सभी से मगर अजनबी रहे,

दुनिया न जीत पाओ तो हारो न खुद को तुम
थोड़ी बहुत तो जेहन में नाराजगी रहे

अपनी तरह सभी को भी किसी की तलाश थी
हम जिसके भी करीब रहे दूर ही रहे

गुजरो जो बाग से तो दुआ मांगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वह डाली हरी रहे.

- निदा फाजली

3 comments:

आपका अख्तर खान अकेला said...

prtibhaa bhn ji bhut khub chyn kiya he naarazgi rhegi to bhut kuch yaad rhegaa. akhtar khan akela kota rajsthan

Rangnath Singh said...

सही है, थोड़ी सी तो दिल में नाराजगी रहे........

अनिल कान्त said...

यही तो ख़ासियत है आपके ब्लॉग की कि अच्छी रचनाएँ पढने को मिल जाती हैं.