Tuesday, September 30, 2014

और पलको पे उजाले से झुके रहते हैं....


हम ने देखी है उन आखों की महकती खुशबू
हाथ से छूके इसे रिश्तो का इल्जाम ना दो 
सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो 
प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो 

प्यार कोई बोल नहीं, प्यार आवाज नहीं 
एक खामोशी है सुनती है कहा करती है
 न ये बुझती है, न रुकती है, न ठहरी है कही 
नूर की बूँद है, सदियों से बहा करती है 

मुस्कराहट सी खिली रहती है आँखों में कही
और पलको पे उजाले से झुके रहते हैं 
होंठ कुछ कहते नहीं, कापते होठों पे मगर
कितने खामोश से अफसाने रुके रहते हैं...



3 comments:

Unknown said...

mera pasandida geet
bahut badhiya

Unknown said...

Waah pyar ko pyar rahne do koi naam na do....bahut khubsurat prastuti...!!

संजय भास्‍कर said...

बहुत नाज़ुक अहसासों के साथ लिखी रचना