Wednesday, November 9, 2016

किसी स्कूल ने नहीं सिखाई वो भाषा...



किसी स्कूल ने नहीं सिखाया
सूखी आँखों में मुरझा गए ख्वाबों को पढ़ पाना,

नहीं सिखाया पढना
बिवाइयों की भाषा में दर्ज
एक उम्र की कथा, एक पगडण्डी की कहानी

किसी कॉलेज में नहीं पढाया गया पढ़ना
सूखे, पपड़ाये होंठों की मुस्कुराहट को
जो उगती है लम्बे घने अंधकार की यात्रा करके

नहीं बताया किसी भाषा के अध्यापक ने
कि चिड़िया लिखते ही आसमान कैसे
भर उठता है फड़फडाते परिंदों से
और कैसे धरती हरी हो उठती है
पेड़ लिखते ही

बहुत ढूँढा विश्वविद्यालयों में उस भाषा को
जो सिखाये खड़ी फसलों के
जल के राख हो जाने के बाद
दोबारा बीज बोने की ताक़त को पढना

कहाँ है वो भाषा
जिसमें खिलखलाहटो में छुपे अवसाद को
पढना सिखाया जाता है
नहीं मिली कोई लिपि जिसमें
‘आखिरी ख़त’ के ‘आखिरी’ हो जाने से पहले
‘उम्मीद’ लिखा जाता है,
‘जिन्दगी’ लिखा जाता है

वो लिपि जो
जिसमें लिखा जाता है कि
सब खत्म होने के बाद भी
बचा ही रहता है 'कुछ'... 


Monday, November 7, 2016

ओ' अच्छी लड़कियों : Pratibha Katiyar



ओ अच्छी लड़कियों
तुम मुस्कुराहटों में सहेज देती हो दुःख
ओढ़ लेती हो चुप्पी की चुनर

जब बोलना चाहती हो दिल से
तो बांध लेती हो बतकही की पाजेब
नाचती फिरती हो
अपनी ही ख्वाहिशों पर
और भर उठती हो संतोष से
कि खुश हैं लोग तुमसे

ओ अच्छी लड़कियों
तुम अपने ही कंधे पर ढोना जानती हो
अपने अरमानों की लाश
तुम्हें आते हैं हुनर अपनी देह को सजाने के
निभाने आते हैं रीति रिवाज, नियम

जानती हो कि तेज चलने वाली और
खुलकर हंसने वाली लड़कियों को
जमाना अच्छा नहीं कहता

तुम जानती हो कि तुम्हारे अच्छे होने पर टिका है
इस समाज का अच्छा होना

ओ अच्छी लड़कियों
तुम देखती हो सपने में कोई राजकुमार
जो आएगा और ले जायेगा किसी महल में
जो देगा जिन्दगी की तमाम खुशियाँ
संभालोगी उसका घर परिवार
उसकी खुशियों पर निसार दोगी जिन्दगी
बच्चो की खिलखिलाह्टों में सार्थकता होगी जीवन की
और चाह सुहागन मरने की

ओ अच्छी लड़कियों
तुम थक नहीं गयीं क्या अच्छे होने की सलीब ढोते ढोते

सुनो, उतार दो अपने सर से अच्छे होने का बोझ
लहराओ न आसमान तक अपना आँचल

हंसो इतनी तेज़ कि धरती का कोना कोना
उस हंसी में भीग जाये

उतार दो रस्मो रिवाज के जेवर
और मुक्त होकर देखो संस्कारों की भारी भरकम ओढनी से

अपनी ख्वाहिशों को गले से लगाकर रो लो जी भर के
आँखों में समेट लो सारे ख्वाब जो डर से देखे नहीं तुमने अब तक

ओ अच्छी लड़कियों
अब किसी का नहीं
संभालो सिर्फ अपना मान

बेलगाम नाचने दो अपनी ख्वाहिशों को
और फूंक मारकर उड़ा दो सीने में पलते
सदियों पुराने दुःख को

पहन के देखो
लोगों की नाराजगी का ताज एक बार
और फोड़ दो अच्छे होने का ठीकरा

ओ अच्छी लड़कियों...

जो सच सच बोलेंगे मारे जाएंगे...



-राजेश जोशी 

जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे
मारे जाएंगे।
कठघरे मे खडे् कर दिए जाएंगे जो विरोध में बोलेंगे
जो सच सच बोलेंगे मारे जाएंगे।

बर्दाश्त नहीं किया जाएगा कि किसी की कमीज हो
उनकी कमीज से ज्यादा सफेद
कमीज पर जिनके दाग नहीं होंगे मारे जाएंगे।
धकेल दिए जाएंगे कला की दुनिया से बाहर
जो चारण नहीं होंगे
जो गुण नही गाएंगे मारे जाएंगे।

धर्म की ध्वजा उठाने जो नहीं जाएंगे जुलूस में
गोलियां भून डालेंगीं उन्हें काफिर करार दिए जाएंगे।
सबसे बडा् अपराध है इस समय में
निहत्थे और निरपराधी होना
जो अपराधी नही होंगे मारे जायेंगे

Thursday, November 3, 2016

ख्वाहिश की लंदन डायरी - 6


डर्डल डोर- आखिर वो दिन आ गया जब मैं अपनी फेवरेट जगह जाने वाली थी यानी डर्डल डोर। यह जगह लंदन से 2 घंटे की दूरी पर था। मामा मामी के दोस्तों को मिलाकर हम करीब दस लोग वहां एक साथ जा रहे थे। गाड़ी में हम खूब मस्ती करते हुए हम डर्डल पहुंच गये लेकिन मेरी आंखें खुली की खुली रह गईं जब मामा ने बताया कि डोर तक पहुंचने के लिए हमें तीन पहाडि़यां पैदल चलनी पड़ेगी। गाडि़यां पार्क करके हमने चढ़ना शुरू किया। आधी पहाड़ी चढ़ते हुए हमें यह लगने लगा कि आगे क्या होने वाला है। जैसे-तैसे हंसी मजाक करते हुए हम लोगों ने दो पहाडि़यां पार कीं। तीसरी पहाड़ी पर असल में चढ़ना नहीं उतरना था। मुझे उतरते हुए काफी घबराहट हो रही थी क्योंकि ढलान काफी ज्यादा थी।
लेकिन उतरने में ज्यादा वक्त नहीं लगी और हम पहाड़ी पार कर गये। इसके बाद जब हम सीढि़यों से उतरे तो एक बहुत ही प्यारा नजारा हमारे सामने था। नीला समंदर और उसमें एक प्यारा सा प्राकतिक रूप से बना हुआ चट्टान का दरवाजा। जो कि बहुत विशाल था। थोड़ी देर हमने वहां के ठंडे पानी में छप छप करी, तस्वीरें खींची और खिंचवाई। थोड़ी देर वहां बैठकर हम समंदर को देखते हुए बातें करते रहे इसके बाद हम वापस उन्हीं पहाडि़यों से चढकर और उतरकर दूसरे समंदर के नजारे देखने को चल पड़े। वो समंदर भी वहां से पंद्रह मिनट की दूरी पर ही था। जब हम वहां पहुंचे तो वहां कई प्रकार के मजेदार म्यूजिकल इंस्टूमेंट्स थे जिनको बजाते हुए मैं गुजर रही थी। थोड़ी देर सुकून से हमने समंदर को देखा और फिर हमने महसूस किया कि हमें भूख लग रही है। इसके बाद हमने इंडियन रेस्टोरेंट को गूगल किया और उसकी खोज करते हुए वहां पहुंचे। वहां पहुंचकर हमने भरपेट खाना खाया और वापस घर की ओर चल पड़े। मन कर रहा था कि मैं सो जाउं लेकिन घर पहुंचने का रास्ता अभी काफी दूर था। रात के एक बजे के करीब हम घर पहुंचे और पहंुचते ही नींद ने हमें घेर लिया।
अगला दिन हमने खूब आराम किया क्योंकि सब बहुत थके हुए थे। अगले दिन हमें इंडिया वापस लौटना था तो हम सब घर पर साथ में रहकर गप्पे लगाना चाहते थे। यह लंदन में हमारा आखिरी दिन था। सारा दिन हमने एक-दूसरे से गप्पे लर्गाईं रात में मामा ने देर तक गिटार पर खूब सारे गाने बजाये। किसी का उठने का मन नहीं था। लेकिन जब रात काफी हो गई तो सबको सोने जाना ही पड़ा।

जब अगले दिन हम उठे तो मम्मी सामान समेट रही थीं। मम्मी ने नाश्ता बनाया दीदी और मामी हमें बाय कहकर अपने काम पर चले गये। हमने मम्मी का बनाया हुआ गर्मागर्म नाश्ता खाया, और उसके बाद मामा के साथ खूब सारी बातें की और टीवी पर एनिमेशन फिल्में देखीं। मामा ने हमारे लिए खाने में दाल बाटी बनाई। खाना खाने के बाद हमने कुछ देर आराम किया और फिर एयरपोर्ट के लिए निकल पड़े। हमारा मन उदास था, जाने का मन नहीं कर रहा था लेकिन इंडिया की याद भी आ रही थी।

लंदन का हमारा सफर पूरा हो चुका था। लंदन की बहुत सारी यादें लेकर हम भारत की ओर लौट रहे थे। 

समाप्त.

Wednesday, November 2, 2016

ख्वाहिश की लंदन डायरी - 5


लीड्स - अगले दिन मुझे और मम्मी को जाना था लीड्स जो कि लंदन से कुछ ही दूर था। मैं मम्मी की एक दोस्त से मिलने लीड्स जा रही थी। उस दिन हम लोग सुबह जल्दी निकल गये। मामी ने हमें बस में बिठाया। हम लोग बहुत खुश थे कि एक और नया शहर देखने को मिलेगा। रास्ता भी खूब सुंदर था। रास्ते में मैंने मम्मी से खूब सारी बातें की और बहुत सारे विंडमिल्स देखे। बस आधी से ज्यादा खाली ही थी इसलिए मैं और मम्मी आराम से पैर पसारकर झपकी लेने लगे। जब हम उठे तो लीड्स आने वाला था। हमारी योजना वहां दो दिन रुकने की थी। जब हम कोच स्टेशन पर उतरे तो वहां पर मम्मी की दोस्त नीरा आंटी और अंकल हमारा इंतजार कर रहे थे। वो लोग हमें देखकर बहुत खुश हुए। हम लोग उनकी कार में बैठकर उनके घर चले गये। उनका शहर लीड्स शहर से दूर था। घर तक का रास्ता बहुत खूबसूरत था। जब हम उनके घर पहुंचे तो हमने देखा कि उनका घर बहुत बड़ा और खूबसूरत था। उसमें एक प्यारा सा बगीचा था जिसमें कुछ खरगोश कूदते फांदते नजर आये। नीरा आंटी ने हमें हमारा कमरा बताया और हमने उसमें अपना सामान रख दिया। मम्मी और आंटी ने एक-दूसरे से बहुत सारी बातें कीं और आंटी ने हमें बहुत लज़ीज पास्ता और गार्लिक ब्रेड बनाकर खिलाया। मजा तो तब आया जब खाने के बाद हम लोग लंबी सैर पर चले गये। उनके घर के पास ही खूब बड़े-बड़े खेत थे। तो हम उन खेतों के आसपास घूमते फिर रहे थे। वहां बहुत प्यारे-प्यारे घोड़े भी थे जिन्होंने कपड़े भी पहने हुए थे। थोड़ी देर की सैर के बाद जब हम लोग घर पहुंचे तो मैं टीवी देखने लगी और मम्मी ने खूब सारी बातें की और खाना खाकर सो गये। अगले दिन जब मम्मी ने उठाया तो उन्होंने बताया कि अंकल और आंटी हमें यॉर्क सिटी घुमाने ले जाने वाले हैं। मैं यह सुनकर बहुत खुश हुई। जल्दी से नहा धोकर मैं तैयार हो गई। गर्मागर्म नाश्ता करने के बाद हम लोग यॉर्कशायर के लिए निकल गये। 
सबसे पहले हम लोग यॉर्कमिनिस्टर चर्च और संग्रहालय देखने गये। उसका आर्किटेक्चर बहुत ही अनूठा था। उस पर बहुत बारीकी से काम किया गया होगा ऐसा लग रहा था। पास में ही एक कैसल थी हम वहां भी घूमने गये तो हमने देखा कि वो टूटा फूटा कैसल यानी किला अपने टूटन के साथ भी काफी खूबसूरत लग रहा था। कुछ देर हम वहां हरी घास पर बैठे रहे। धूप में हमने थोड़ी देर हमने आराम किया और इसके बाद हम चित्र संग्रहालय देखने चले गये जहां दुनिया भर के मशहूर आर्टिस्ट की अद्भुत पेन्टिंग्स थीं। पास में एक नदी थी जब हम उस नदी के पास से गुजर रहे थे तो हमने वहां प्यारी प्यारी ढेर सारी बतखें देखीं जो धूप में आराम फरमा रही थीं। हम लोग उसके बाद मॉल घूमने चले गये। हमने वहां कुछ खाया पिया, थोड़ी शॉपिंग की और फिर घर चले गये।
घर जाकर मैंने और मम्मी ने अपना सामान समेटा क्योंकि अगले दिन हमें सुबह जल्दी ही लंदन के लिए निकलना था। सुबह जब मम्मी ने उठाया तो मैं जल्दी जल्दी तैयार हो गई। नाश्ता करने के बाद थोड़ी बातें करीं और फिर स्टेशन के लिए हम निकल गये। आंटी ने हमारेे लिए रास्ते में खाने के लिए खूब सारा खाना रखा, उन्होंने हमें बस में बिठाया और हम वापस लंदन की ओर लौटने लगे। सुबह जल्दी उठने के कारण बस में हम दोनों को गहरी नींद आ गई। जब हमने आंखें खोलीं तो लंदन आ चुका था।

(अगली कड़ी और अंतिम में डरडल डोर और भारत वापसी - जारी )