किसी स्कूल ने नहीं सिखाया
सूखी आँखों में मुरझा गए ख्वाबों को पढ़ पाना,
नहीं सिखाया पढना
बिवाइयों की भाषा में दर्ज
एक उम्र की कथा, एक पगडण्डी की कहानी
किसी कॉलेज में नहीं पढाया गया पढ़ना
सूखे, पपड़ाये होंठों की मुस्कुराहट को
जो उगती है लम्बे घने अंधकार की यात्रा करके
नहीं बताया किसी भाषा के अध्यापक ने
कि चिड़िया लिखते ही आसमान कैसे
भर उठता है फड़फडाते परिंदों से
और कैसे धरती हरी हो उठती है
पेड़ लिखते ही
बहुत ढूँढा विश्वविद्यालयों में उस भाषा को
जो सिखाये खड़ी फसलों के
जल के राख हो जाने के बाद
दोबारा बीज बोने की ताक़त को पढना
कहाँ है वो भाषा
जिसमें खिलखलाहटो में छुपे अवसाद को
पढना सिखाया जाता है
नहीं मिली कोई लिपि जिसमें
‘आखिरी ख़त’ के ‘आखिरी’ हो जाने से पहले
‘उम्मीद’ लिखा जाता है,
‘जिन्दगी’ लिखा जाता है
वो लिपि जो
जिसमें लिखा जाता है कि
सब खत्म होने के बाद भी
बचा ही रहता है 'कुछ'...
सूखी आँखों में मुरझा गए ख्वाबों को पढ़ पाना,
नहीं सिखाया पढना
बिवाइयों की भाषा में दर्ज
एक उम्र की कथा, एक पगडण्डी की कहानी
किसी कॉलेज में नहीं पढाया गया पढ़ना
सूखे, पपड़ाये होंठों की मुस्कुराहट को
जो उगती है लम्बे घने अंधकार की यात्रा करके
नहीं बताया किसी भाषा के अध्यापक ने
कि चिड़िया लिखते ही आसमान कैसे
भर उठता है फड़फडाते परिंदों से
और कैसे धरती हरी हो उठती है
पेड़ लिखते ही
बहुत ढूँढा विश्वविद्यालयों में उस भाषा को
जो सिखाये खड़ी फसलों के
जल के राख हो जाने के बाद
दोबारा बीज बोने की ताक़त को पढना
कहाँ है वो भाषा
जिसमें खिलखलाहटो में छुपे अवसाद को
पढना सिखाया जाता है
नहीं मिली कोई लिपि जिसमें
‘आखिरी ख़त’ के ‘आखिरी’ हो जाने से पहले
‘उम्मीद’ लिखा जाता है,
‘जिन्दगी’ लिखा जाता है
वो लिपि जो
जिसमें लिखा जाता है कि
सब खत्म होने के बाद भी
बचा ही रहता है 'कुछ'...