Wednesday, October 23, 2013

प्रेम में 'मैं' नहीं होता....


मैंने कहा राग 
तुमने कहा रंग 

मैंने कहा धरती 
तुमने कहा आकाश 

मैंने कहा नदी 
तुमने कहा समन्दर 

मैंने कहा 'प्रेम' 
तुमने कहा 'मैं' 

इसके बाद 
हम दोनों खामोश हो गए

कि प्रेम में 'मैं' नहीं होता...

6 comments:

अरुण चन्द्र रॉय said...

सुन्दर रचना

vandana gupta said...

kya bat kahi hai

प्रवीण पाण्डेय said...

गहरा सच, काश लोग समझें।

Mahi S said...

True :)

संध्या शर्मा said...

सही है जहाँ 'मैं' है वहां प्रेम कहाँ … सुन्दर रचना के लिए बधाई..

रश्मि प्रभा... said...

'मैं' तो एक किनारा है प्रेम का - दोनों किनारों को मिलाता है और जो जुड़ गया - वह 'मैं' नहीं होता