Sunday, January 30, 2011

बैठे हैं रहगुज़र पे हम...

दिल ही तो है न संग-ओ-ख़िश्त दर्द से भर न आये क्यों
रोएंगे हम हज़ार बार कोई हमें सताये क्यों

दैर नहीं, हरम नहीं, दर नहीं, आस्तां नहीं
बैठे हैं रहगुज़र पे हम, ग़ैर हमें उठाये क्यों

जब वो जमाल-ए-दिलफ़रोज, सूरते-मेह्रे-नीमरोज़
आप ही हो नज़ारा-सोज़, पर्दे में मुँह छिपाये क्यों

दश्ना-ए-ग़म्ज़ा जांसितां, नावक-ए-नाज़ बे-पनाह
तेरा ही अक्स-ए-रुख़ ही, सामने तेरे आये क्यों

क़ैदे-हयातो-बन्दे-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से निजात पाये क्यों

हुस्न और उसपे हुस्न-ज़न रह गई बुल्हवस की शर्म
अपने पे एतमाद है ग़ैर को आज़माये क्यों

वां वो ग़ुरूर-ए-इज़्ज़-ओ-नाज़ यां ये हिजाब-ए-पास-वज़अ़
राह में हम मिलें कहाँ, बज़्म में वो बुलायें क्यों

हाँ वो नहीं ख़ुदापरस्त, जाओ वो बेवफ़ा सही
जिसको हो दीन-ओं-दिल अज़ीज़, उसकी गली में जाये क्यों

"ग़ालिब"-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन-से काम बन्द हैं
रोइए ज़ार-ज़ार क्या, कीजिए हाय-हाय क्यों

Friday, January 28, 2011

खेल ही तो है...

हर मौसम से
पतझर की मानिंद
झरता अवसाद
मद्धम मद्धम...

सन्नाटा
चबाते-चबाते
बेस्वाद हो चुकी जिंदगी.

दूर-दूर तक पसरे
एकांत के सेहरा में
किसी बंजारन की तरह
भटकते-भटकते,

अपनी ही सांसों की आवाज
से घबराकर
किसी तरह पीछा छुड़ाना
फुरसत से.

व्यस्तताओं से,
मुस्कुराहटों से,
दुखों को रौंदने की कोशिश
खेल ही तो है...


Saturday, January 15, 2011

सवाल तुम, जवाब गुम...


लड़की सवालों पे पांव धरकर लड़के तक पहुंचती थी. हमेशा. लड़का रास्ते में ढेर सारे सवाल बिछाता था. छोटे सवाल, बड़े सवाल. मीठे सवाल, कड़वे सवाल. अच्छे सवाल, सच्चे सवाल. दुनिया भर के सवाल लड़के की झोली में होते थे. वो सबके जवाब तलाश रहा था. उसे लगता था कि उसके हर सवाल का जवाब लड़की के पास है. लड़की उन सवालों पर से कूदते-फांदते उन्हें पार करती, मानो सवालों से खेल रही हो.

लड़का दुनिया की फिक्रो-अलम में इस कदर उलझा रहता कि उसे कुछ भी सूझता नहीं था. उसे दुनिया भर की नाइंसाफियों पर गुस्सा आता था. वो पूरी दुनिया को नये सिरे से संवारना चाहता था. एक ऐसी दुनिया जहां इंसानियत बसती हो. जहां, धर्म, सियासत, सत्ता और अर्थ की लड़ाई इंसान को हैवान न बनाती हो. वो लड़की से ही पूछता था कि आखिर वो कुछ कर क्यों नहीं पाता? कोई कुछ कर क्यों नहीं पाता? लड़की खामोश रहती. वो बस लड़के के सवालों पर पांव धरती और लड़के की ओर चल पड़ती.

धीरे-धीरे लड़की के लिए सवालों पर पांव धरकर लड़के तक पहुंचना मुश्किल होने लगा. वो जब भी उसके करीब जाना चाहती, लड़का सवालों का रास्ता बिछा देता. लंबा रास्ता. निर्जन, वीरान, ऊबड़-खाबड़ रास्ता. लड़की उन रास्तों पर चल पड़ती. धीरे-धीरे रास्ते लंबे होने लगे. लड़की कितना भी चले, वो कभी खत्म ही नहीं होते. दूरियां बढ़ती ही जातीं. हर रोज कुछ नये सवाल उन दूरियों को बढ़ा देते. लड़की चलती ही जाती, चलती ही जाती. वो थककर बैठ जाती, तो लड़का फिर से सवाल करता तुम मेरे पास क्यों नहीं आतीं? लड़की कभी कह ही नहीं पाती कि हमारे दरम्यिान सवालों का लंबा रास्ता तुमने ही तो बिछाया है. रास्ता जो खत्म होने को ही नहीं आता. मैं तो चल ही रही हूं न जाने कब से. अब तो मैं सवालों पर पांव धरती हूं तो वे और बड़े हो जाते हैं. कितना भी चलो रास्ते खत्म ही नहीं होते.

लड़की जानती थी कि कुछ सवाल अपना जवाब खुद होते हैं. कुछ जवाब सवालों के अभाव में यूं ही भटकते फिरते हैं और कुछ सवाल जवाबों की तलाश में. सवालों के जंगल से उबरने के लिए बस चलना जरूरी है. लेकिन वो खामोश रहती. लड़की का सफर जारी रहता और लड़के का गुस्सा तारी रहता. एक दिन लड़की ने सारे रास्तों को समेट दिया. पुल बना दिया सवालों का. पुल के लिए उसे कुछ सवाल कम पड़ते, तो लड़के से पूछ लेती कुछ. जवाब के बदले लड़का उसे एक और सवाल पकड़ा देता. लड़की का काम अब आसान होने लगा. वो मुस्कुराकर लड़के से सवाल ले लेती और पुल बनाने में उसका उपयोग करती. उसका पुल पूरा होने को था. दुनिया भर के सवालों को सहेजकर उसने एक दिन पुल बना ही लिया. उस पुल को पारकर जैसे ही वो लड़के के करीब पहुंची, लड़के के सारे सवाल काफूर हो गये...

उन दोनों ने एक साथ सवालों के उस पुल को गिरते देखा...दोनों की आंखों में अब नई दुनिया के सपने एक साथ सजते थे...

Sunday, January 9, 2011

रात भर वर्षा


लड़का भाषा के गांव में रहता था. उसके पास सुंदर-सुंदर शब्द थे. शब्दों का घना जंगल था. पूरा बागीचा था. उसमें छोटे-बड़े, लाल, सफेद, नीले, पीले तरह-तरह के फूल खिलते थे. शब्दों के फूल. उन फूलों की खुशबू ऐसी थी कि किसी को छू भर दे, तो मतवाला कर दे. लड़का उन्हीं खूबसूरत फूलों के बीच पला बढ़ा था. उसे अच्छी तरह पता था कि किस फूल की क्या तासीर है. किस फूल को जूड़े में सजाना ठीक होता है और किसे सिरहाने रखकर सोने से नींद अच्छी आती है. किस फूल से उदासी भाग जाती है और किस फूल की खुशबू से फि$जां में संगीत गूंजने लगता है. लड़का शब्दों के जंगल में रच-बस गया था. उसका हुनर बेमिसाल था. जिंदगी की हर मुश्किल को वो शब्दों के फूलों से आसान बना लेता था. हर मौके के लिए, हर मुश्किल के लिए उसके पास कोई न कोई शब्द था. लड़के से सब खुश रहते थे. लड़का भी सबसे खुश रहता था.

लड़की मौन के गांव में रहती थी. लड़की के पास हर मौके के लिए एक मौन होता था. लंबा मौन, छोटा मौन. गहरा मौन, बहुत गहरा मौन. लड़की मौन की ही भाषा समझती थी. उसी में खुश रहती थी. एक रोज लड़की लड़के के गांव के पास से गु$जरी. शब्दों के फूल खूब-खूब खिले थे. लड़की उस ओर ख्ंिाची चली गई. लड़का पेड़ के नीचे बैठकर कोई गीत गा रहा था. लड़की उसे अभिभूत होकर सुनने लगी. लड़का गाता रहा. लड़की सुनती रही. उन दोनों पर ढेरों फूल बरसते रहे. लड़की फूलों के जादुई असर में आने लगी. लड़का रोज गाता था. लेकिन उस रोज उसे पहली बार गाने का असल सुख महसूस हुआ. उसे लड़की द्वारा सुना जाना अच्छा लगा. फिर तो रोज लड़की वहां आती. लड़का उसके लिए कोई नया गीत लिखता. उसे गाकर सुनाता. लड़की चुपचाप सुनती और लौट जाती. लड़का पूछता कैसा लगा? तो लड़की की कोरों पर दो बूंदें चमक उठतीं और वो मुस्कुरा देती. लड़का लड़की को रोज फूलों का एक गुच्छा भेंट करता था. धीरे-धीरे लड़की भाषा का जादू महसूस करने लगी. लड़की की खिलखिलाहट अब निखर गई थी. लड़की के मौन में मुस्कुराहट का रंग घुलने लगा था. किसी भी बात के जवाब में लड़की का बस मुस्कुराना या पलकें झपकाना लड़के को अच्छा लगता था. लड़के को लड़की का मौन लुभाता था. लड़की को लड़के की भाषा.

दोनों जंगल में घूमते फिरते थे. दोनों ने एक घर बनाना शुरू किया. भाषा की दीवारों पर मौन की खिड़कियां उगतीं, तो घर की खूबसूरती निखर जाती. लड़की शब्दों का इस्तेमाल घर को सजाने के लिए करती थी. लड़के को अब लड़की के मौन से प्यार हो चला था. उस रात दोनों अपने घर को अंतिम रूप व आकार दे रहे थे. घर के दरवाजे पर अरमानों की रंगोली सजी थी. लड़की नाचती फिरती थी. पूरे घर में शब्दों के फूल सजे थे. जरा सी हवा चलते ही वे झूमने लगते. उस रात पहली बार लड़की ने कुछ कहना चाहा था. उसने पहली बार अपने होंठों पर शब्दों के फूल खिलाने चाहे थे. लड़का कबसे इसी का इंत$जार कर रहा था. लड़की के होंठ $जरा से हिले. लड़का अपलक उसे देख रहा था. समूची सृष्टि लड़की के मौन के टूटने का मं$जर देखने को व्याकुल हो उठी. तभी आकाश में तेज बिजली कड़की. लड़की के होंठ खामोश ही रह गये.

सुना है उस रात घनघोर वर्षा हुई. इतनी वर्षा इससे पहले कभी नहीं हुई थी. लड़की भीगती रही. लड़का भी भीगता रहा. उस रात की वर्षा में जंगल नदी हो गया. नदी समंदर हो गयी. खेत, घर, खलिहान सब पानी हो गये. लड़की का घर भी पानी हो गया. शब्द और मौन एक-दूसरे का हाथ थामे नदी में एक साथ विलीन हो गये. कहते हैं इसके बाद से वैसे फूल कभी किसी को देखने को नहीं मिले. लड़की और लड़के का कुछ पता नहीं चला. हां, एक नेमप्लेट के अवशेष वहां अब भी मिलते हैं. जिस पर कुछ खुदा हुआ सा मालूम होता है. लेकिन चूंकि अब उन शब्दों की इबारत को समझने वाला कोई नहीं इसलिए हर कोई अंदाजा ही लगाता है कि $जरूर इस पर प्यार लिखा होगा.

लड़की अब भी मौन के गांव में भटकती है. लड़का अब भी भाषा के गांव में उसका इंतजार करता है. उन दोनों गांवों के बीच कोई पुल नहीं है. हर अमावस की रात को जब सफेद फूलों से धरती भर उठती है, तब लड़की की खिलखिलाहटों का संगीत अब भी गूंजता है.

ऐसा लोग कहते हैं...

Saturday, January 8, 2011

Wednesday, January 5, 2011

चाँद मद्धम है आस्माँ चुप है




 चांद मद्धम है आस्माँ चुप है
नींद की गोद में जहाँ चुप है

दूर वादी में दूधिया बादल,
झुक के परबत को प्यार करते हैं
दिल में नाकाम हसरतें लेकर,
हम तेरा इंतज़ार करते हैं

इन बहारों के साए में आ जा,
फिर मोहब्बत जवाँ रहे न रहे
ज़िन्दगी तेरे ना-मुरादों पर,
कल तलक मेहरबाँ रहे न रहे

रोज़ की तरह आज भी तारे,
सुबह की गर्द में न खो जाएँ
आ तेरे गम़ में जागती आँखें,
कम से कम एक रात सो जाएँ

चाँद मद्धम है आस्माँ चुप है
नींद की गोद में जहाँ चुप है...

- साहिर लुधियानवी