Monday, November 1, 2010

एक मीठी सी झिड़की

लंबे अरसे बाद नीरज जी को फोन किया. गोपालदास नीरज जी. उनसे जब भी मिली हूं मन को अच्छा सा अहसास हुआ है. इधर मैंने उन्हें लंबे अरसे बाद फोन किया. नाम सुनते ही शिकायती लहजा उभरा, मैं लखनऊ आया था तुम मिलीं क्यों नहीं. मेरे पास कोई जवाब नहीं था. एक मौन था. क्या व्यस्तता का रोना रोती, क्या जवाब देती. खैर, एक बुजुर्ग की तरह डांटने के बाद आशीर्वाद की झड़ी लगाते हुए जब उन्होंने कहा, सुखी रहो तो मन सुखी हो गया. दो लाइनें उन्होंने चलते-चलते सुनाईं जो उनके आशीर्वाद की तरह साथ हो लीं-
जिंदगी मैंने बिताई नहीं सभी की तरह
हर एक पल को जिया पूरी एक सदी की तरह...

10 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

नीरज जी के गीतों में पूरे सदी का जीना छिपा है।

Ashok Kumar pandey said...

नीरज हमारे समय की धरोहर हैं…

राजेश उत्‍साही said...

सचमुच।

राजेश उत्‍साही said...

सचमुच।

सुशीला पुरी said...

जिंदगी मैंने बिताई नहीं सभी की तरह
हर एक पल को जिया पूरी एक सदी की तरह...!
वाह !!!

स्वप्निल तिवारी said...

aap bahut bhagyashali hain ki aapko unki daant sunne ko mil jaati hai... :)

अरुण चन्द्र रॉय said...

"जिंदगी मैंने बिताई नहीं सभी की तरह
हर एक पल को जिया पूरी एक सदी की तरह...!"... नीरज जी को बस कई बार सुना... हर बार नई बात लगी... उनके हर छंद जीवन की बात करते हैं..

नीरज गोस्वामी said...

बुजुर्ग दांते नहीं...आशीर्वाद देते हैं...उनकी दांत में ही आशीर्वाद छुपा रहता है...अच्छा लगा उनके बारे में पढ़ कर...वो शतायु हों ये ही कामना है...

नीरज

daanish said...

नीरज जी से डांट मिली
ढेरों आशीष मिला ...
आप भाग्य शाली हैं .
उनकी पंक्तियाँ पढवाने के लिए
आभार स्वीकारें .

प्रदीप कांत said...

बुजुर्गों की डाँट में भी आशीर्वाद ही होता है।