मुझे कभी-कभी सिस्टमैटिक होने से बड़ी शिकायत होती है. बल्कि यूं कहूं कि एक अजीब सी ऊब होती है. कभी-कभी तो यह ऊब इस कदर बढ़ जाती है कि घबराहट में तब्दील होने लगती है. सजा संवरा घर, हर काम का एक वक्त मुकर्रर, जिंदगी एकदम करीने से. ये भी कोई जीना है.
मैंने हमेशा कल्पना की एक सजे-संवरे सुलझे, साफ-सुथरे घर की. अपनी इस कल्पना को साकार करने के लिए काफी मशक्कत भी की. लेकिन मुझे आकर्षित किया हमेशा बिखरे हुए घरों ने. जहां घर भले ही बिखरे हों पर मन एकदम ठिकाने पर. इन दिनों मैं उसी उलझाव को जी रही हूं. सब कुछ बिखरा हुआ है. संभालने का मन भी नहीं. और बिखेर देने का मन है. किताबों की ओर देखने का दिल नहीं चाहता. आइस पाइस खेलने का दिल चाहता है. इक्कम दुक्कम भी. दुनिया की खबरें जानने का मन नहीं करता, मां के संग गप्पें लड़ाने का मन करता है. तेज आवाज में बेसुरा सा गाने को जी चाहता है. जिंदगी को उलट-पुलट करने को जी चाहता है. सूरज को चांद के भीतर छुपा देने का मन होता है. धरती का घूमना रोक कर चांद को घुमाने का मन करता है. सब उल्टा-पुल्टा. मन भी कितना अजीब होता है.
मैंने हमेशा कल्पना की एक सजे-संवरे सुलझे, साफ-सुथरे घर की. अपनी इस कल्पना को साकार करने के लिए काफी मशक्कत भी की. लेकिन मुझे आकर्षित किया हमेशा बिखरे हुए घरों ने. जहां घर भले ही बिखरे हों पर मन एकदम ठिकाने पर. इन दिनों मैं उसी उलझाव को जी रही हूं. सब कुछ बिखरा हुआ है. संभालने का मन भी नहीं. और बिखेर देने का मन है. किताबों की ओर देखने का दिल नहीं चाहता. आइस पाइस खेलने का दिल चाहता है. इक्कम दुक्कम भी. दुनिया की खबरें जानने का मन नहीं करता, मां के संग गप्पें लड़ाने का मन करता है. तेज आवाज में बेसुरा सा गाने को जी चाहता है. जिंदगी को उलट-पुलट करने को जी चाहता है. सूरज को चांद के भीतर छुपा देने का मन होता है. धरती का घूमना रोक कर चांद को घुमाने का मन करता है. सब उल्टा-पुल्टा. मन भी कितना अजीब होता है.