Saturday, January 23, 2010
कुछ याद उन्हें भी कर लो
सुभाष चंद्र बोस. ये तीन शब्द किसी व्यक्ति का नाम भर नहीं हैं. इन तीन शब्दों को दोहराते हुए रगों में दौड़ते लहू की रफ्तार थोड़ी और बढ़ जाती है. देशभक्ति का सैलाब आंखों में उमड़ आता है. ऊर्जा, शक्ति, सोच का कभी न थमने वाला सिलसिला है सुभाष चंद्र बोस का नाम. आज उनका जन्मदिन है. उनका जन्मदिन कुछ खास ही मायने रखता है यूथ के लिए. शायद ही कोई युवा हो जो सुभाष के जज़्बे का कायल न हो. ये उनके नाम का ही असर है कि जो उनसे एक बार भी मिला उम्र फिर उसे कभी बूढ़ा न कर सकी.
मुझे याद है सन् 1999 का वो दिन. नवंबर के ही दिन थे. हल्की ठंड के उस मौसम में कैप्टन रामसिंह से मिलने की ख़्वाहिश लिये मैंने उनके घर पर दस्तक दी थी. वही आजाद हिंद फौज के सिपाही कैप्टन रामसिंह जिनकी जोशीली धुन पर सिपाही मार्च करते थे. आंखों में वही 'कदम-कदम बढ़ाये जा...Ó की धुन बजाते चमकती आंखों वाले कैप्टन रामसिंह की छवि थी. कैप्टन रामसिंह आये. वे बूढ़े हो चुके थे. बीमार भी थे. वे जो बोल रहे थे, उसे समझने में खासी मशक्कत करनी पड़ रही थी. लेकिन वो जो नहीं बोल रहे थे, वो साफ सुनाई दे रहा था. नेता जी का नाम सुनते ही उनकी आंखें चमकने लगीं. जैसे अभी चल ही देंगे बस. उनका रोम-रोम न जाने कितनी कहानियां बयान कर रहा था. ये है जादू सुभाष के नाम का.
ये जादू कभी कम नहीं होगा. कभी भी नहीं. मुझे याद है कि अमर चित्रकथा में पहली बार पढ़ा था, सुभाष चंद्र बोस को. छ:-सात साल की उम्र रही होगी शायद. वो उनके विराट व्यक्तित्व का ही असर था शायद कि कुछ ही सालों में उनकी आत्मकथा ढूंढ निकाली थी. हर पेज से गुजरते हुए सिहरन सी महसूस होती थी. उस नन्ही उम्र में बहुत कुछ समझ की जद से यकीनन छूट ही गया होगा लेकिन फिर भी बहुत कुछ था जो साथ रह गया. कॉलेज पहुंचते-पहुंचते यही अहसास मैंने अपने दूसरे साथियों में भी महसूस किया. 'कदम-कदम बढ़ाये जा...Ó की धुन अंदर कहीं बजने लगती है उनका नाम लेते ही.
कॉलेज की कैंटीन हो या डिबेट के लिए तैयार किया गया डायस सुभाष अब भी हर जगह मौजूद हैं. हर युवा में वे ऊर्जा बनकर, हौसला बनकर दौड़ रहे हैं. धर्म, जाति, प्रांत की सरहदों से परे सिर्फ एक जज़्बा. पिछले दिनों एक परिवार से मुलाकात हुई. ऐसा परिवार जो पिछले तीन दिनों से 23 जनवरी का इंत$जार कर रहा है डिलीवरी के लिए. वे अपना बच्चा (जो कि सिजेरियन होना है) 23 जनवरी को ही दुनिया में लाना चाहते हैं. ये है सुभाष चंद्र बोस का असर. कश्मीर से कन्याकुमारी तक. एक और बात सुभाष चंद्र बोस के बारे में बेहद दिलचस्प लगती है कि वो इकलौते ऐसे फ्रीडम लीडर हैं, जो कभी भी नहीं मरेंगे. उनकी मौत से जुड़ी जितनी कहानियां हैं, उससे ज्यादा बड़ी हैं उनके होने को लेकर आस्थाएं. इतिहास में कहीं उनकी मृत्यु का प्रमाण नहीं. अपने प्रिय नेता को हमेशा जिंदा रखने का इससे अच्छा बहाना भला और क्या हो सकता है. जब-तब उनके होने को लेकर, उनके जैसे किसी शख्स के होने को लेकर खबरें आती रहती हैं कि शायद वे सुभाष हैं...सुभाष कभी नहीं मरेंगे क्योंकि सुभाष कभी नहीं मरते.
हम सबमें ऊर्जा का प्रवाह भरने वाले सुभाष के जन्मदिन पर आज पूरा देश गौरवान्वित है. आज 23 जनवरी को जन्मे ढेर सारे बच्चों में से कुछ बच्चे भी अगर सुभाष हो जायें तो...ये एक ख़्वाब है. लेकिन ऐसा हो भी तो सकता है. हो रहा भी तो है. हर यूथ में कहीं न कहीं सुभाष सांस ले ही रहे हैं. जब भी कुछ गलत होता देखते हैं, तो मन बेचैन हो उठता है. पूरे सिस्टम को उखाड़ फेंकने का, नया सिस्टम बनाने का जी चाहता है. यही तो है सुभाष होना. मंजूनाथ में भी सुभाष ही तो थे, चंद्रशेखर में भी...हर उस अवेयर यूथ में सुभाष ही तो हैं, जो समझौतों में बिलीव नहीं करता. जो खारिज कर देता है मिडियॉकर होने को. जो जिंदगी को अपनी शर्तों पर, अपनी तरह से जीना चाहता है. जो अपने लक्ष्य और राहों को लेकर क्लियर है. सुभाष हैं...हमेशा रहेंगे. जब भी मन निराशा से भर उठे और अंदर से आवाज आये कदम-कदम बढ़ाये जा...तो समझ लीजिए की सुभाष हैं. यहीं कहीं.
- Pratibha
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9 comments:
bahut khoob aapne neta ji ki yaad dila di....
salaam neta ji....
ऐसे व्यक्तित्व वाले पुरुष को सलाम ।
Sahi likha apne Subhash kabhi nahi marte.aaj ke youth ko unse prarna leni chahiye.subhash ji ki yaad dilane ke liye dhanyavad
Rohit Kaushik
नेता जी सुभाषचन्द्र बोस को जन्म-दिवस पर नमन!
Really nice hamage to Netaji....it is exactly what most of the people think about him. Thanks for writing such peice.
निश्चय ही सुभाष युवाओं में बहते रक्त की ऊर्जा हैं ! उनका नाम अन्तर में शौर्य और तीव्रता की सृष्टि करता है ।
आभार इस पुण्य स्मरण के लिये ।
काश प्रतिभा की दुनिया में कल ही दस्तक दी होती...सच कहूँ तो मेरा फेसबुक अकाउंट अभी भी गवाही दे रहा है कि मन कितना बेचैन था किसी जगह कुछ ऐसे सुभाष चन्द्र बोस से मिलने की. एक अजीब सी छटपटाहट हो रही थी कि कोई सुभाष को क्यों नहीं याद कर रहा है. सब हाई प्रोफाइल यूथ आइकन्स में बीजी हैं. लेकिन यहाँ आकर सुकून मिला. खुद भी लिखने ही वाला था अभी. अब नहीं...क्यूंकि इससे बेहतर लिख नहीं पाउँगा और बार बार ये एहसास होगा कि बेहतर क्यों नहीं लिख रहे हो...
प्रतिभा जी, आपसे सहमत हूं कि नेताजी का नाम आज भी रगों में जोश भर देता है लेकिन अफ़्सोस ये है कि सुभाष, भगत, आजाद जैसे कितने ही दीवाने नेपथ्य में भेजे जा चुके हैं दो या तीन महानायकों को महामहिमामंडित करने के चक्कर में। और अफ़सोस के साथ असहमति जता रहा हूं आपकी इस बात से कि आज भी युवा उनका नाम सुनकर रोमांचित हो जाते हैं। आज का युवा तो रोमांचित होता है शकीरा, एम.जे. जैसे ग्लैमर के देवताओं से। अच्छा लगा आपकी पोस्ट पढकर। अगर आज भी आपके आसपास ऐसी युवा पीढी है जो इन मतवालों से प्रेरित है तो आप व आपका परिवेश वाकई बहुत खुशनसीब है।
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