पलाश से भरी धरती भी उदास हो सकती है
तारों भरा आसमान भी हो सकता है गुमसुम
मुस्कुराहटों के मौसम के संग भी
आ सकती हैं निराश बारिशें
आ सकती हैं निराश बारिशें
तमाम सभ्यताओं के बारे में जान लेने के बाद भी
बची रह सकती है असभ्यता
बची रह सकती है असभ्यता
रास्ता मिलना
जिंदगी में भटक जाने का भरम भी हो सकता है
हिदायतें हमारे जिए हुए डर हो सकते हैं
और क्रोध हमारी असमर्थता
और क्रोध हमारी असमर्थता
दिल का टूटना
पत्थरदिल दुनिया में दिल के बचे रहने की मुनादी भी हो सकती है
और दर्द का होना हो सकता है
जीवन में बची हुई आस्था का होना
और दर्द का होना हो सकता है
जीवन में बची हुई आस्था का होना
प्रार्थनाएं खोई हुई उम्मीदों के लिए भटकना भी हो सकता है
और तुम्हारा न होना तुम्हारा होना भी हो सकता है.
(शाम की चाय के संग अगड़म बगड़म )
और तुम्हारा न होना तुम्हारा होना भी हो सकता है.
(शाम की चाय के संग अगड़म बगड़म )
3 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 01 मार्च 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
तमाम सभ्यताओं के बारे में जान लेने के बाद भी
बची रह सकती है असभ्यता
बहुत खूब ।
वाह वाह....
एक अर्थपूर्ण रचना... आभार
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