Monday, February 22, 2016

सवाल तुम सवाल हम



शिक्षा हमें समझ देती है, संवेदना देती है, सवाल देती है, सवालों से जूझने की ताकत देती है, रास्तों को ढूंढने की ओर अग्रसर करती है। शिक्षा हमें तर्कशील बनाती है, विवेकशील बनाती है और खुद अपना नजरिया बनाने के लिए हमारे जेहन को तैयार करती है। शिक्षा जो हम पर निर्णय थोपती नहीं, निर्णय लेने की योग्यता तैयार करती है। लेकिन जब भी लोग भीड़ बनकर किसी तय किये गये एजेंडे पर प्रायोजित तरह से रिएक्ट करें तो शिक्षा पर सवाल उठते हैं। उठते ही हैं।

 पिछले दिनों एक रेल यात्रा के दौरान मन में फिर से वही सवाल खुदबुदाने लगे कि क्या अर्थ है शिक्षित होने का आखिर? कब कहेंगे कि हम शिक्षित हैं और कब कहेंगे कि नहीं।

वो चार युवा थे। दो लड़कियां, दो लड़के। अस्सी प्रतिशत अंग्रेजी में सारी बातचीत हो रही थी। चूंकि वो युवा थे जाहिर है उनके भीतर काफी एग्रेशन भी था। उन्हें इस बात से काफी दिक्कत हो रही थी कि ष्यह कैसा समय आ गया है जब लोग बराबरी की बात करने लगे हैं। बराबरी जैसी कोई चीज नहीं होती। न कभी हो सकती। लड़की कह रही थी कि उनसे जरा से प्यार से बात कर लो तो सर पर ही सवार होने लगते हैं। हद है। अपनी हैसियत ही भूल जाते हैं। दुनिया में किसी देश में बराबरी नहीं है। बराबरी, समता, एकता ये सब सुनने में अच्छे लगते हैं इनके पीछे भागने वाले लोग मूर्ख हैं। समाज की व्यवस्था को ठीक से चलते रहने क्यों नहीं देते ये लोग। आरक्षण लेकर कहीं पहुंच भी गये तो कर क्या लेंगे? वो क्लास कहां से लायेंगे जो हमारे पास है?

जाहिर है पूरी बातचीत में संभ्रांतीय अहंकार छलक रहा था। पता चला कि वो सब अच्छे स्कूल काॅलेजों से पढ़े हुए स्टूडेंट्स हैं। सोचने पर बाध्य हूं कि यह कैसी शिक्षा है जो छात्रों को संवेदना के उस स्तर तक नहीं ले जा पा रही जहां यह विचार पल्लवित हो कि इंसान और इंसान के बीच उसके अधिकारों के बीच जन्म के आधार पर, धर्म के आधार पर, जाति के आधार पर, लिंग के आधार पर कोई फर्क नहीं होना चाहिए। तो दिक्कत कहां है आखिर? क्या हमारे स्कूल, काॅलेज शिक्षित होने के प्रमाणपत्र, नौकरी पाने के प्रमाणपत्र भर बांट रहे हैं या वो हमें एक बेहतर, संवेदनशील इंसान बनाने की ओर भी अग्रसर हैं?

चीजें हमें वो दिखती हैं जिन्हें हम जिस नजरिये से देखना चाहते हैं। शिक्षा हमें पूर्वाग्रहों से मुक्त नजरिये की ओर ले जाती है, उसे ले जाना चाहिए। अगर हमारी शिक्षा पूर्वाग्रहों के चश्मे ही बांट रही है तो सोचना पड़ेगा। हिंदी, अंग्रेजी, गणित, विज्ञान में आने वाले 98 प्रतिशत अंक किस काम के जब बतौर इंसान हम दूसरे को उसका सम्मान देने के काबिल बन ही न सकें?

4 comments:

Shuba said...

कौन बताये उन्हें कि हैसियत किसी की कम नहीं किसी से. जीवन किसी का कम नहीं किसी दूसरे के जीवन से.

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 23 फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

yashoda Agrawal said...

गलती हो गई क्षमा याचना सहित आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 24फरवरी 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

सु-मन (Suman Kapoor) said...

विचारणीय पोस्ट