Wednesday, February 9, 2011

एक अनलिखी नज्म सिर्फ जीने के लिए

 मोहब्बत की शदीद बारिश का मौसम है. हर कोई बसंत के रंग में रंगा जा रहा है. कोई अकेले मुस्कुरा रहा है, कोई अपने साथी के साथ है. कहीं, कोई किसी की याद में गुम है, कहीं मोहब्बत का मीठा सा गम है. मोहब्बत का जिक्र आते ही अमृता आपा का नाम याद आता है. और उनका नाम आते ही इमरोज का. आज अरसे बाद इमरोज साहब को फोन किया. वही मखमली आवाज़, वही शायराना अंदाज. मैं जब भी उनसे रू-ब-रू होती हूं, कुछ कह ही नहीं पाती. सारे सवाल न जाने कहां गुम हो जाते हैं. मानो उनसे कुछ भी पूछना हिमाकत करना होगा. उन्हें बस देखते रहो. उनके जिए हर लम्हे में वो कितना कुछ तो बोल चुके हैं.
मोहब्बत पर उनका फलसफा किसी से छुपा नहीं. अमृता आपा को उनकी आखिरी सांस तक अपनी पलकों पर सजाकर रखा. आज वो उन्हें अपने सीने में छुपाए फिरते हैं. उनका दिल यह मानने को तैयार ही नहीं कि अमृता अब नहीं है. उनकी मोहब्बत अब भी वैसी ही ताजा है, जैसे अभी-अभी कोई फूल खिला हो जिस पर ओस की बूंदों की नमी बाकी हो. उनसे हुई जो बात वो बाद में, पहले आइये पढ़ते हैं उनकी एक नज्म जो उन्होंने फोन पर सुनाई है, आप सबसे साझा करने के लिए-
वो जब भी मिलती है
एक अनलिखी नज्म नजर आती है.
मैं इस अनलिखी नज्म को
कई बार लिख चुका हूं.
फिर भी हर बार
यह अनलिखी ही रह जाती है.
हो सकता है
यह अनलिखी नज्म
लिखने के लिए
हो ही ना,
सिर्फ जीने के लिए हो.
- इमरोज

7 comments:

Rangnath Singh said...

जाने वो कैसे, लोग थे जिनके; प्यार को प्यार मिला !

प्रवीण पाण्डेय said...

बड़ी गहरी।

के सी said...

जीते जी किंवदंती हो गए लोग...

Swapnrang said...

speechless awesome

स्वप्निल तिवारी said...

unse milne par bhi aisa hee lagta hai..mano amrita imroz dono se mil rahe hain.... :)

वर्षा said...

अनलिखी नज़्म ही दिल के सबसे करीब हो जाती है।

कुश said...

ये जादू है अमृता का..