Tuesday, May 4, 2010

महान विचारक कार्ल मार्क्स का जन्मदिन (5 मई)

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असली इन्सान की तरह जियेंगे

कठिनाइयों से रीता जीवन
मेरे लिए नहीं

नहीं, मेरे तूफानी मन को यह नहीं स्वीकार
मुझे तो चाहिए एक महान ऊंचा लक्ष्य
और उसके लिए
उम्र भर संघर्षों का अटूट क्रम

ओ कला! तू खोल
मानवता की धरोहर, अपने अमूल्य कोशों के द्वार
मेरे लिए खोल
अपने प्रज्ञा और संवेगों के आलिंगन में
अखिल विश्व को बांध लूँगा मैं

आओ
हम बीहड़ और सुदूर यात्रा पर चलें
आओ, क्योंकि हमें स्वीकार नहीं
छिछला निरुदेश्य और लक्ष्यहीन जीवन

हम ऊंघते, कलम घिसते
उत्पीडन और लाचारी में नहीं जियेंगे
हम आकांचा, आक्रोश, आवेग और
अभिमान से जियेंगे.

असली इन्सान की तरह जियेंगे.
- कार्ल मार्क्स

10 comments:

Dev K Jha said...

बहुत ही बेहतर...
शब्द बहुत कुछ कहते हुए... वैसे मनुष्य पर मनुष्य के उत्पीडन और लाचारी के खिलाफ़ असली इंसान के जंग के बिगुल की बहुत बेहतर पंक्तियां हैं यह ।

Admin said...

आवेग और अभिमान से जियेंगे.
असली इन्सान की तरह जियेंगे.


महान क्रांति के जनक मार्क्स कों शत शत नमन

दिनेशराय द्विवेदी said...

उस महान विभूति को नमन जिस ने दुनिया को बदलने का दर्शन दिया।

निर्मला कपिला said...

कार्ल मार्क्स की कविता पढवाने के लिये धन्यवाद्

Randhir Singh Suman said...

nice

Udan Tashtari said...

अच्छा याद किया उनके जन्म दिवस के दिन!

Rangnath Singh said...

उनको प्रणाम।

Ashok Kumar pandey said...

इस कविता को यहां लगाने के लिये बहुत-बहुत आभार…ज़िंदगी ऐसे ही जीने के लिये होती है।

देवेन्द्र पाण्डेय said...

हम ऊंघते, कलम घिसते उत्पीडन और लाचारी में नहीं जियेंगे हम आकांछा, आक्रोश, आवेग और अभिमान से जियेंगे.
...काल मार्क्स को याद करने का यह अंदाज़ अच्छा लगा.

Ritambhara said...

aaj bahut dino baad aapka blog dekha, behut hi sunder duniya hai ye. aur is kavita ko dene ke liye bahut bahut dhanyavad/