Tuesday, August 19, 2008

allav

1८ अगस्त गुलज़ार साहब का जन्मदिन
आज उनकी ये नज़्म मेरे ब्लॉग पर

रात भर सर्द हवा चलती रही
रात भर हमने अलाव तापा
मैंने माजी से कई खुश्क सी शाखिएँ
काटी तुमने भी गुजरे हुए लम्हों के पत्ते
तोडे मैंने जेबों से निकली सभी सुखी नज्म
तुमने भी हाथों से मुरझाये हुए ख़त खोले
अपनी इन आंखों से मैंने कई मांजे तोडे
और हाथों से कई बासी लकीरें फेंकी
तुमने पलकों पे नमी सूख गयी थी ,
सो गिरा दिन रात भर जो भी मिला
उगते बदन पर हमको काट के दाल दिया
जलते अलावों मैं उसे रात भर फूंकों से
हर लौ को जगाये रखा और दो जिस्मों के इंधन को
जलाये रखा भर बुझते हुए रिश्ते को तापा हमने

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