Thursday, March 27, 2025

जब उदास होती हूँ


जब उदास होती हूँ
किसी नदी का हाथ थाम लेती हूँ
  
जब फफक कर रो पड़ने को होती हूँ 
किसी पेड़ को गले लगा लेती हूँ 

जब अन्याय की पराकाष्ठा होती है 
और मूर्खतापूर्ण बहसों का दौर शुरू होता है 
किसी मजदूर के पास बैठकर 
उसकी बीड़ी साझा करती हूँ।  

जब दुनिया नाउम्मीदी से भरने को होती है 
किसानों के साथ मिलकर 
उम्मीद के बीज बोने लगती हूँ 

जब नायक की विद्रूप हंसी भयभीत करती है 
बेहतर दुनिया के सपने देखने लगती हूँ 

जानती हूँ मेरे अकेले के बस का नही 
इस दुनिया को जीने लायक बना पाना 
फिर भी स्त्री हूँ, हार कैसे मानूँगी
इसलिए अपने हिस्से के काम 
और सुभीते से करने लगती हूँ...

Wednesday, March 26, 2025

मनोकामिनी सा मन



बीतती नहीं वो रात 
जब आसमान झील में औंधा पड़ा था 
और जुगनू हमारे साथ 
झील में पड़े सितारों से बतिया रहे थे 

हवाओं में एक खुनक थी 
और तुमने मेरी देह पर 
ख़ामोशी की चादर लपेट थी 

तुम्हारी आँखों से सारा अनकहा 
मनोकामिनी की ख़ुशबू सा झर उठा था 
झील की सतह पर हवाएँ नृत्य कर रही थीं 
जैसे नृत्य करती है स्त्री की अभिलाषा 

हमने साँसों के सम पर मुस्कुराहटें पिरो दीं थीं 
सितारों भरा आसमान 
आसमान काँधों से आ लगा था

कोई तारा टूटने नहीं दिया तुमने उस रोज 
कि हर ख़्वाब को आहिस्ता से सहेज लिया 

इन जिये हुए लम्हों ने दुनिया संभालने की ताक़त दी है 
इन उम्मीद भरे लम्हों ने मज़लूमों का साथ देने 
और मगरूर शासक से आँख मिलाने की हिम्मत दी है 

हाँ, प्रेम जरूरी है दुनिया को सुंदर बनाने के लिए 
इंसानियत में आस्था बनाए रखने के लिए। 

Monday, March 24, 2025

जिद्दी हवाओं के गीत



झील में डुबकी लगाकर आई हवाओं में 
कोई बेफिक्री तारी थी 

देर रात की जाग 
हवाओं की आँखों की चमक थी 

उन्हें न सूरज से निस्बत 
न पहाड़ से, न जंगल से 
उन्हें बस हमारे करीब आना था 
हम दोनों के बीच ही बैठना था 
हम दोनों का हाथ थामना था 
उन्हें हमारी सुबह की चाय में 
किसी जादू सा घुल जाना था 

वो जिद्दी हवाएँ थीं 
सुबह बीत जाने के बाद भी 
अपनी पूरी धज से इतरा रही हैं 

उन जिद्दी हवाओं की खुशबू 
रोज एक गीत लिखती है 
कि दुनिया एक रोज 
सबके जीने के लायक होगी 
न कोई हिंसा होगी, न कोई नफरत 

उन गीतों को 
एक ख़्वाबिदा सी लड़की 
रोज गुनगुनाती है 
सूरज की किरणें उन गीतों को 
लाड़ करती हैं 

तुम मेरा माथा चूमते हो 
और धरती आश्वस्ति की धुन पर 
झूम उठती है। 

Sunday, March 23, 2025

पंछी घर देर ले लौटे थे उस रोज...



दुनियादारी और जिम्मेदारियों के बोझ से
बस झुकने को थे कांधे 
कि तुम्हारे स्पर्श के फाहे 
राहत बन उतर आए थे उन पर
 
आँखों के नीचे सदियों के रतजगे 
अपनी स्थाई पैठ बनाने ही वाले थे 
कि तुम्हारी पोरों की छुअन ने 
उन्हें गुलाबी पंखुड़ियों में बदल दिया था 

भागते-दौड़ते पैरों में उग आए छालों तले 
तुमने अपनी हथेलियाँ रख दी थीं 
और पीड़ा का सुर 
प्रेम के सुर में ढलने लगा था 

तुम जानते हो कि 
स्त्री के दुख का उपाय सिर्फ प्रकृति के पास है 
इसलिए हमेशा 
तुम तोहफे में कभी नदी, कभी जंगल 
कभी समंदर तो कभी तारों भरा आसमान भेजा करते 

कोई दुख कैसे टिकता भला जब 
सामने प्यार से भरा सागर हो 
और साथ हो तुम्हारा प्रेम...

सूरज ने थोड़ा ओवरटाइम किया था उस रोज 
और पंछी भी घर देर से लौटे थे। 

Saturday, March 22, 2025

हम मिलेंगे


 हम मिलेंगे 
जब सूरज डूबा नहीं होगा 
और साँझ 
नदी में झिलमिलाते दिन की परछाईं 
एकटक देख रही होगी 

हम मिलेंगे जब नफ़रतें 
अपना सामान समेटकर जाने को होंगी 
और दुनिया के सारे रास्ते 
इश्क़ गली की ओर मुड़ रहे होंगे 

हम मिलेंगे 
जब शाखें उम्मीदों से भर उठेंगी 
तारों भरा आसमान 
हथेली पर उतर आएगा 
और तुम सप्तऋषि मण्डल को 
मेरे माथे पर सजाते हुए कहोगे 
कि देखो पल भर को ही सही 
हमारे प्यार ने 
दुनिया को सुंदर बना तो दिया है। 

गुजराती अनुवाद- 
|| આપણે મળીશું ||
આપણે મળીશું
જ્યારે
સૂર્ય હજુ ડૂબ્યો નહીં હોય
અને સાંજ
નદીમાં ઝબકતા દિવસના ઓળા
એકીટશે નિહાળતી હશે
આપણે મળીશું
જ્યારે નફરત પોતાનો સામાન સંકેલીને જવામાં હશે
અને દુનિયાના બધાં રસ્તા
પ્રેમ - ગલી તરફ વળતાં હશે
આપણે મળીશું
જ્યારે શાખાઓ આશાઓથી લચી પડી હશે
તારા - ખચિત આકાશ
હથેળીમાં ઉતરી આવ્યું હશે
અને તું
સપ્તર્ષિ - મંડળને મારી સેંથીમાં પૂરીને કહીશ
' જો, ભલે પળવાર માટે હો
પણ આપણા પ્રેમથી
દુનિયા સુંદર બની તો ખરી ને ! '
- પ્રતિભા કટિયાર
- હિન્દી પરથી અનુવાદ : ભગવાન થાવરાણી