छोड़ जाऊंगी तुम्हारे लिए
बसंत का सारा उजास
रक्तिम आभा उगते सूर्य की
छोड़ जाउंगी फसलों से भरे खेत
वक़्त पे आने वाला मानसून
बर्फ से ढंकी वादियाँ
जंगल की खुशबू और
पत्तियों की सरसराहट का संगीत
शरारतें छोड़ जाऊंगी उस नन्हे मेमने की
जिसे तुमने एक बार उठाया था गोद में
वो बारिश की पहली बूँद जिसके नाक पर गिरने के इंतजार में
तुम घूमती थीं नाक उठाये पूरे आंगन में
तुम्हारी हथेलियों में रख जाऊंगी
जिन्दगी जीने की ख्वाहिश वाले सोने से चमकते सिक्के
छोड़ जाऊंगी तुम्हारे लिए
फेनिल लहरों का दुलार...
(5 फरवरी 2018 के सुबह सवेरे में प्रकाशित)
2 comments:
बहुत सुन्दर
http://bulletinofblog.blogspot.in/2018/03/blog-post.html
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