बचपन से उसे शाम के मुकाबले धूल के बगूले उठाते गर्मियों के दिन और ठिठुरती, कंपकंपाती रातें ज्यादा पसंद थीं. वो कलाई पर बंधी टिकटिक करती सुइयों की चौबीस घंटों की कदमताल में से शाम को आजाद कर देना चाहती थी. कभी-कभी यूं भी ख्याल आता कि कोई हो, जिसके कांधों पर अपनी सारी शामें टिका दी जायें और फिर मस्ती से घूमा जाये. कोई डर ही न रहे. गोधूलि की बेला के समय बजती बांसुरी की धुन उसे अवसाद से भर देती थी. वो अपने कानों पर हथेलियां रखकर सर झुकाकर बैठ जाती थी. शाम को अपने घरों को लौटते परिंदों की आहट से उसे वहशत होती थी.
'लगता है पिछले जन्म में तेरी सास का नाम शाम था', किसी सहेली ने उसे छेड़ा था. जमाना कितना भी बदला हो लेकिन बेचारी सासों को अब भी लड़कियों का सबसे बड़ा दुश्मन माना जाना बंद नहीं हुआ. सो तानों और फिकरों में सासें अब भी ललिता पवार और बिंदू की तरह ही मुस्कुराती थीं. लड़की इन तानों से बेफिक्र थी. उसे बस अपने डर से निजात पानी होती थी. उसने अपनी शामें छुपाकर रखनी शुरू कर दीं.
उस रोज आकाश में बादल लुका-छिपी खेल रहे थे. आसमान खूब साफ था, मानो किसी ने अभी-अभी धोकर सुखाया हो. पहाड़ों पर चूंकि सैलानियों की आमद कुछ ज्यादा ही हो गई थी, सो उस रोज बादलों के कुछ टुकड़ों ने मैदानी शहरों का रुख किया. वे घर की छतों पर बैठकर शहर की जिंदगी देखते और मुस्कुराते. वो भी ऐसी ही एक उतरती शाम थी. लड़की उस शाम के बीत जाने के इंतजार में अनमनी सी यहां से वहां भागती फिर रही थी. बांसुरी की आवाज से बचने के लिए शहर के शोर में डूब जाने को व्याकुल थी. तभी उसे किसी ने आवाज दी थी.
'ये पता बतायेंगी जरा,'
अजनबी लड़के ने पूछा था.
लड़की ने पता बता दिया. लेकिन वो आवाज उसके कानों में ठहर सी गई. उसकी आवाज में उसे अपने जीवन की सारी शामें खिलती नजर आईं. अचानक उसे बांसुरी की आवाज मीठी लगने लगी.
कभी-कभी किसी लम्हे में कैसे जिंदगी धड़कने लगती है. लड़की की शामों में इंद्रधनुष के सारे रंग घुलने लगे, सरगम के सातों स्वर.
अब उसे शामों से डर नहीं लगता था. लड़का अक्सर उसके पास कुछ न कुछ पूछने को लौटने लगा और हर बार कुछ भूल जाता. लड़की हर बार उसे उसका पिछला भूला हुआ सामान लौटाती और नया वाला सहेजकर रख लेती. छत पर बैठे बादलों को लड़की का यह अंदाज खूब भला लगता. जब वो लड़के को कुछ लौटा रही होती और कुछ चुरा रही होती तब कभी-कभी वे बादल उन पर अपनी बूंदें बरसा देते. लड़की चिहुंक उठती. लड़का भी खिल जाता. लड़के ने उस दिन कहा, 'मैं कई बार पता भूला हूं लेकिन तुमने ऐसा पता बताया कि खुद अपना पता ही भूल गया हूं.' लड़का जब ऐसा कह रहा था तो छत पर बैठा बादल उसकी आंखों में जा बैठा था. लड़की को ऐसे स्नेह की छुअन की आदत नहीं थी. उस एक बूंद में उसका पूरा जीवन भीग गया.
बादलों से उनकी दोस्ती थी, सो वे दोनों बादलों पर बैठकर दुनिया भर घूमते-फिरते थे. सतरंगी सपनों की उड़ान ऐसी कि आकाश भी छोटा लगे. लड़की को अक्सर अपनी बाहें नन्ही और आंचल कम पड़ता मालूम होता.
लड़का कहता, 'चोर हो तुम. हर बार कुछ चुरा लेती हो.'
लड़की मुस्कुरा देती.
'हां हूं तो सही और बेईमान भी. एक दिन मुकर जाऊंगी सब लेकर. कुछ वापस नहीं दूंगी.'
लड़का हंस देता.
'मुझे कुछ भी वापस नहीं चाहिए. '
'बस, अपने पास रहने देना.'
लड़की इतरा उठती.
जिंदगी अब उसकी दहलीज पर थी. अचानक कहीं से कोई आवाज आई थी. किसी ने लड़के को पुकारा था. आवाज पहाड़ों के उस पार से आई थी शायद, या समंदर पार से. नहीं नहीं सतपुड़ा के जंगलों के पार से आई थी वो आवाज. अरे नहीं, लड़के की जेब से ही तो आई थी आवाज. वो उस आवाज के जवाब में उठ खड़ा हुआ था.
चल पड़ा था. हड़बड़ी में सामान समेटा था उसने. पैरों में सैंडल बस फंसाये भर थे. पलटकर देखने का भी वक्त नहीं था उसके पास. जाने कैसी बेचैनी थी उसके जाने में. लड़की उसके जाने के बाद देर तक आसपास कुछ तलाशती रही. लेकिन इस बार लड़का अपना कोई सामान भूलकर नहीं गया था. लड़की को याद आया कि उसकी जेब में तो उसने अपनी जिंदगी का पता भी रख दिया था.
घड़ी देखी तो शाम के साढ़े छह बज रहे थे. तबसे हर शाम से वो अपनी जिंदगी का पता पूछती फिरती है...शामें उसके सवाल के जवाब में बस उदासी ओढ़ लेती हैं.
8 comments:
mind blowing :)
चल पड़ा था. हड़बड़ी में सामान समेटा था उसने. पैरों में सैंडल बस फंसाये भर थे. पलटकर देखने का भी वक्त नहीं था उसके पास. जाने कैसी बेचैनी थी उसके जाने में. लड़की उसके जाने के बाद देर तक आसपास कुछ तलाशती रही.
इस "कुछ" का ही तो पता नहीं आप तलाश क्या रहे हो..बस बैचैनी कुछ खो जाने की..
कई बार पढ़ कर भी समझ नहीं आया कि लड़की के ऐसे हालात पे क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए .... खिलखिलाना चाहूं तो बेमानी लगती है मुस्कराहट भी और रोना भी नहीं आता ...ये उदासी जैसी चीज़ अच्छी नहीं लगती अब
so soft n touchy- Varsha
पब्लिश न हो पाने के कारण मै इसे यहाँ रख रही हूँ. शुक्रिया वर्षा जी!
कभी कभी जिन्दगी में जब तक रात आती है, सब दुख पार हो चुके होते हैं।
उनका ख्याल आते ही एक और ख्याल आया....इसे पढ़कर मुझे भी शाम का ख्याल आया। मैं इसे पढ़कर उधेरबून में हूं, सोचता हूं कि लड़की को जब याद आया होगा कि उसकी जेब में तो उसने अपनी जिंदगी का पता भी रख दिया था तो उसके ख्याल में क्या क्या आया होगा। मैं भी घड़ी देखकर रहा हूं कुल जमा चार बजकर पचास मिनट हो रहे हैं, वक्त रुकने का नाम नहीं ले रहा है।
लड़की को याद आया कि उसकी जेब में तो उसने अपनी जिंदगी का पता भी रख दिया था. .............बहुत बढ़िया.........बेहतरीन.......उम्दा
bahut prem se likhi hui ek prem kahani. umda.
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