जागने के बाद भी अलसाती रहूंगी
सिरहाने रखी चाय ठंडी होती रहेगी
और गुनगुनी चादर में पूरे होने दूँगी ख़्वाब
सोचा था एक दिन जल्दी जागूंगी
उगते सूरज से आँखें मिलाऊँगी
ओस भरे बागीचे में नंगे पाँव टहलती रहूंगी
अख़बार में तसल्ली से ढूँढूंगी
कोई अच्छी खबर
सोचा था एक दिन फुर्सत से लेटी रहूंगी धूप में
सीने पर पड़ी रहेगी प्रिय किताब और
सोचती रहूंगी तुम्हारे बारे में
कि तुम अगर बारे में सोचते होगे
तो कैसे लगते होगे
सोचा था एक रोज टूटी-फूटी इबारत में
लिखूंगी कच्चा-पक्का सा प्रेम पत्र
देर तक रोती रहूंगी उसे लिखकर
फिर बिना तुम्हें भेजे ही
लौट आऊंगी अपनी दुनिया में
सोचा था अधूरा पड़ा रियाज़ उठाऊंगी एक रोज
इत्मिनान से साधूंगी न लगने वाले सुर
धूनी लगाकर बैठ जाऊँगी
तुम्हारी याद के आगे कि जरा कम आये वो
यूँ हर वक़्त याद आना बुरी बात है
सोचा था एक रोज तुम्हारी पसंद के रंग पहनूंगी
इतराउंगी आईने के सामने
कुछ मन का बनाउंगी
कुछ रंग भरूंगी अधूरी कलाकृति में
पौधों को पानी देने के बहाने बतियाऊँगी उनसे
सोचा था एक रोज तसल्ली से दोस्तों से बतियाउंगी
अरसे से न देखे गए मैसेज के जवाब दूँगी
कोई पसंद की फिल्म देखूंगी
पड़ोसन से उसका हाल पूछूंगी
बिल्ली के बच्चे के संग खेलूंगी
और हुआ यूँ कि वो एक दिन मिला
तो घर की सफाई,
कपड़ों और सामान की धराई
बड़ी, पापड़ मसालों को धूप दिखाने
बाजार से राशन, सब्जी लाने उसे सहेजने
बल्ब बदलने
मेहमानों की मेजबानी में बीत गया
मीर का दीवान रखा मुस्कुराता रहा
और मैं अधूरे सपने से बाहर निकल
फिरकी सी नाचती रही दिन भर
हुआ यूँ कि छुट्टी का एक दिन
ढेर सारे अरमानों के साथ उगा और
ढेर सारे काम करते बीत गया.
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 20 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 21 नवम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
स्त्री जीवन संदर्भ को प्रासंगिक बनाती बहुत सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर😍💓
ReplyDeleteHm sabki kahani hai ye
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